सुमित्रानंदन पंत की वे आँखे
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इसके कवि हैं सुमित्रानंदन पंत। यह एक प्रगतिशील दौर की कविता है। इस कविता में कवि ने विकास के विरोधाभास पर प्रहार किया है। समाज में किसानों की स्थिति बहुत ही दयनीय है और यह बात कवि को बहुत आहत करती है।
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