Hindi, asked by niseka2120, 3 months ago

सामा विशाम
परामिण बठ​

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Answered by Sampurnakarpha
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भाई और बहन के त्योहार के रूप में आपने हमेशा रक्षा बंधन और भैया दूज की मिसालें दी होंगी. रक्षा बंधन को सेकुलर बनाने के लिए उसका संबंध हुमायूं और कर्णावती से भी करवा दिया गया कि राखी भेजकर कर्णावती ने हुमायूं से मदद मांगी थी, लेकिन देश के बाकी हिस्सों में अल्पज्ञात भाई-बहनों के रिश्तों की गरमाहट के एक त्योहार अभी-अभी कार्तिक पूर्णिमा को मनाया गया. इसका नाम है सामा चकेबा. लोक आस्था के कुछ सबसे खूबसूरत त्योहारों में से एक है सामा चकेबा. भाई-बहन के कोमल और प्रगाढ़ रिश्ते को बेहद मासूम अभिव्यक्ति देने वाला यह लोकपर्व समृद्ध मिथिला संस्कृति की पहचान रहा है. इसकी पृष्ठभूमि में कोई पौराणिक कथा नहीं, सदियों से मौखिक परंपरा से चली आ रही एक लोककथा है और उसकी जड़ें जाकर भगवान कृष्ण से जुड़ती हैं.

श्यामा या सामा कृष्ण की बेटी थीं. उनके पति थे चक्रवाक या चकेबा. साम्ब जिसे मैथिलि में सतभइयां कहा जाता है वह कृष्ण के बेटे और सामा के भाई थे. दोनों में बचपन से असीम स्नेह था. सामा प्रकृति प्रेमी थी जिसका ज्यादा वक्त पक्षियों, वृक्षों और फूल-पत्तों के बीच ही बीतता था. वह अपनी दासी डिहुली के साथ वृंदावन जाकर ऋषियों के बीच खेला करती थी. कृष्ण के एक मंत्री चुरक ने जिसे बाद में, चुगला (चुगलखोर) नाम से जाना गया, सामा के खिलाफ कृष्ण के कान भरने शुरू कर दिए.

उसने सामा पर वृन्दावन के एक तपस्वी के साथ अवैध संबंध का आरोप लगाया. कृष्ण उसकी बातों में आ गए और उन्होंने अपनी बेटी को पक्षी बन जाने का शाप दे दिया. सामा पंछी बन गई वृंदावन के वन-उपवन में रहने लगी. उसके वियोग में उसका पति चकेबा भी पंछी बन गया. उसे इस रूप में देख वहां के साधु-संत भी परिन्दे बन गए. जब सामा के भाई साम्ब को यह सब मालूम पड़ा तो उसने कृष्ण को समझाने की भरसक कोशिश की. कृष्ण नहीं माने तो वह तपस्या पर बैठ गया. अपनी कठिन तपस्या के बल पर अंततः उसने कृष्ण को मनाने में सफलता पाई. प्रसन्न होकर कृष्ण ने वचन दिया कि सामा हर साल कार्तिक के महीने में आठ दिनों के लिए उसके पास आएगी और कार्तिक की पूर्णिमा को पुनः लौट जायेगी. भाई की कोशिश से कार्तिक में सामा और चकेब का मिलन हुआ. उसी दिन के याद में आज भी सामा चकेबा का त्योहार मनाया जाता है.

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