साँप को चक्षुःश्रवा कहते हैं । मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था । अन्य इन्द्रियों ने मानो सहानुभूति से अपनी शक्ति आँखों को दे दी हो । साँप के फन की ओर मेरी आँखें लगी हुई थीं कि वह कब किस ओर को आक्रमण करता है, साँप ने मोहनी-सी डाल दी थी । शायद वह मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था, पर जिस विचार और आशा को लेकर मैंने कुएँ में घुसने की ठानी थी, वह तो आकाश-कुसुम था । मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उल्टी निकलती हैं । मुझे साँप का साक्षात् होते ही अपनी योजना और आशा की असंभवता प्रतीत हो गयी ।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ अथवा पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(स) कुएँ में उतरने पर लेखक को क्या अनुभव हुआ ?
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KuwaitKuwait mein utarne ke bad lekhak ne anubhav Kiya ki manushya ka anubhav yojanaen kabhi-kabhi kitni meethi aur ulti ulti nikal jaati hai
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Explanation:
साँप को चूक श्रवा कहा गया है क्योंकि 7 दिन आंखों से देखता है उन आंखों से ही सुनता है दोनों काम वह आंखों से ही करता है
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