Hindi, asked by RushabhSorte, 1 year ago

सांप्रदायिकता या भ्रष्टाचार पर निबंध लिखिए​

Answers

Answered by Riyanshiii
3

_______भ्रष्टाचार_______

<b>

“हो राम राज्य स्थापित यहां, चाहते थे ऐसा गांधी। आह! गांधी के देश में देखो, उठी है भ्रष्टाचार की आंधी। भ्रष्टाचार की इस आंधी में, जनहित को तो थाह नहीं। विश्व कह रहा अचरण कहता यह गांधी का देश नहीं।”

<b>

‘भ्रष्टाचार’ दो शब्दों के मेल से बना है – भ्रष्ट + आचार। भ्रष्ट का अर्थ होता है ‘गिरा हुआ’ और आचार का तात्पर्य है ‘आचरण’। इस प्रकार भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ हुआ भ्रष्ट आचरण अथवा गिरा हुआ आचरण। समाज के साथ स्वार्थ, लोभ और मोह की दृष्टि से किया गया अमानवीय कृत्य ही भ्रष्टाचार कहलाता है।

भ्रष्टाचार का प्रमुख अड्डा राजनीति है। राजनीति में प्रवेश करते ही कुशल राजनीतिज्ञ भ्रष्टाचार के हथकंडों का प्रशिक्षण लेता है। मतदान के समय मतदाता को किस प्रकार संभ्रमित किया जाता है। व्यापार में भ्रष्टाचार की कमी नहीं है। व्यापारी क्रय-विक्रय के समय तोल में बेईमानी करता है। वस्तुओं में मिलावट से भारी धनोपार्जन करता है। अस्पतालों में गरीब और साधारण जनता को सुविधा नहीं मिलती जबकि वही सुविधा अमीरों को प्रदान की जाती है।

आज भी सरकार या धर्मार्थ संस्थानों द्वारा प्रदत्त दवाइयां गरीबों को न मिलकर डॉक्टरों और नर्सों द्वारा बाजार में बेच दी जाती हैं। मानव जीवन का कोई क्षेत्र भी ऐसा नहीं है जिसमें भ्रष्टाचार न हो। शिक्षा प्राप्त करने का सबको समान अधिकार है, लेकिन स्कूलों में इसकी अनुदान फीसें हैं कि प्राथमिक शिक्षा भी अब असंभव सी हो गई है। अध्यापकों की यह स्थिति है कि वे कक्षा में न पढ़ाकर प्राइवेट ट्यूशन पर विशेष बल देते हैं।

पुलिस विभाग से कौन परिचित नहीं है। इसके भ्रष्टाचारों को तो साहित्यकार भी सुनाते-सुनाते थक गए। चोर, डाकू या अपराधी अपराध-स्थल से भाग जाते हैं तब पुलिस वहां पहुंचती है। आज तो सेना तक में भी भ्रष्टाचार पैदा हो गया है। युद्ध के समय सीमा पर रसद को न पहुंचाकर अपने घरों को भर लेते हैं। इंजीनियर इससे अछूते नहीं है। वे ठेकेदारों से सांठ-गांठ करके निर्माण कार्यो में घटिया किस्म का समान लगवाते हैं।

भ्रष्टाचार पनपने के कई कारण है — समाज में मानव मूल्यों का पतन, सरकार के प्रशासन की शिथिलता अथवा सरकार की न्याय विधान की कमजोरी, धार्मिक पाखंड प्रियता, प्रवृत्तिगत कमी-आयकर; बिक्रीकर देने में हमारी प्रवृत्ति का दोष है। हम सत्य निष्ठा का परिचय नहीं देते। प्रेस की सतर्कता की भी कमी है या सामाजिक चेतना की कमी, असामाजिक तत्वों से भय।

भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए व्यक्ति समाज और सरकार तीनों की भूमिकाएँ अपेक्षित हैं। व्यक्ति को अपनी विलासी प्रवृत्ति व लालची प्रवृत्ति को त्यागना होगा। समाज को शिक्षित करना होगा। ऐसे लोग जो भ्रष्टाचारी हैं उनका सामाजिक बहिष्कार करना होगा। तभी भ्रष्टाचारी अपने मार्ग को बदल सकेंगे। सरकार को भी कठोरता से अपने नियमों का पालन करना होगा। दूसरी ओर समाज में चेतना लाने के लिए साहित्यकारों, मनीषियों कलाकारों, प्राध्यापकों, अधिवक्ताओं को यह दायित्व अपने कंधों पर लेना होगा।

Attachments:
Similar questions