Social Sciences, asked by eshwarsahu422, 6 months ago

संप्रदायवाद का अर्थ लिखिए​

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Answered by neelanshisharma14
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Explanation:

सम्प्रदायवाद का अर्थ ‘‘दूसरे समुदाय के लोगो के प्रति धार्मिक भाषा अथवा सांस्कृतिक आधार पर असहिष्णुता की भावना रखना तथा धार्मिक सांस्कृतिक भिन्नता के आधार पर अपने समुदाय के लिए राजनीतिक अधिकार, अधिक सत्ता, प्रतिष्ठा की मांगे रखना और अपने हितो को राष्ट्रीय हितो से ऊपर रखना है।

सम्प्रदायवाद की प्रमुख विशेषताएं

यह अंधविश्वास पर आधारित है।

यह असहिष्णुता पर आधारित है।

यह दूसरे धर्मो के प्रति दुष्प्रचार करता है।

यह दूसरो के विरूद्ध हिंसा सहित अतिवादी तरीको को स्वीकार करता है।

सम्प्रदायिकता की समस्या के मुख्य कारण

धर्म की संकीर्ण व्याख्या- धर्म की संकीर्ण व्याख्या लोगो को धर्म के मूल स्वरूप से अलग कर देती है धर्म की संकीर्ण व्याख्या साम्प्रदायिकता का कारण है-

सामाजिक मान्यताएं- विभिन्न सम्प्रदायवादी धर्मिक मान्यताएं एक दूसरे से भिन्न है जो परस्पर दूरी का कारण बनती है। छूआछूत व ऊंचनीच की भावना सम्प्रदायवाद को फैलाती है।

राजनीतिक दलो द्वारा प्रोत्साहन- भारत के विविध राजनीतिक दल चुनाव के समय वोटो की राजनीति से साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन देते है।

साम्प्रदायिक संगठन- कुछ सामप्रदायिक संगठन अपनी संकीर्ण राजनीति से लोगो के बीच साम्प्रदायिकता की भावना को भड़काकर अपने आपको सच्चा राष्ट्रवादी कहते है।

मुस्लिम समाज का आार्थिक एवं शैक्षाणिक दृष्टि से पिछड़ा़पन- ब्रिटिश शासनकाल से ही मुसलमान आर्थिक दृष्टि से पिछडे़ हुए रहे है। तथा शैक्षणिक दृष्टि से भी पिछडे रह जाने के कारण सरकारी नौकरियों व्यापार उद्योग में उसकी स्थिति सुधर नही पाई है। इससे उनमें असंतोष पनपने लगा।

प्रशासनिक अक्षामता- सरकार और प्रशासन की उदासीनता के कारण भी कभी कभी साम्पद्रायिक दंगे हो जाते है।

सम्प्रदायवाद का लोकतंत्र पर प्रभाव

राष्ट्रीय एकता बाधित- राष्ट्रीय एकता का अर्थ कि देश के सभी लोग एक होकर रहे जबकि साम्प्रदायिकता देश की जनता को समूहो तथा साम्प्रदायिकता में बांट देती है।

राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा प्रभावित- साम्प्रदायिक तत्वो द्वारा फैलाई जाने वाली अफवाहों व गडब़ ड़ी से देश की शांति भंग हो जाती है।

वैनस्यता को बढ़़ावा- साम्प्रदायिकता से विभिन्न वर्गो में द्वेश को बढ़ावा मिलता है।

विकास में बाधक- साम्प्रदायिक दुर्भावना के कारण समाज में पारस्परिक सहयोग की भावना समाप्त हो जाती है। देश के विभिन्न स्थानो पर साम्प्रदायिक दंगे होने से वहां का जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाता है और समस्त विकास कार्य ठप्प हो जाते है।

भ्रष्टाचार में वृद्धि- उच्चाधिकारी और राजनेता साम्प्रदायिक आधार पर अनुचित एवं अवैधानिक कार्यवाहीयो में संलग्न व्यक्ति का ही पक्ष लेते है। इतना ही नही नौकरियां एवं अन्य प्रकार की सुविधा देने में भी साम्प्रदायिक आधार पर विचार करते है। इससे उनका नैतिक पतन होता है और भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है।

साम्प्रदायिकता को दूर करने के उपाय

सभी धर्मावलम्बियों को इस बात के लिये प्रेरित किया जाना चाहिए कि वे अपने धर्म का पालन करने के साथ ही साथ अन्य सम्प्रदायो का भी सम्मान करें।

शासन को अपनी तुष्टिकरण की नीति का परित्याग कर देना चाहिए।

साम्प्रदायिक संगठनो एवं सम्प्रदायवाद का प्रचार प्रसार करने वाले प्रकाशनो पर सरकारी कानून द्वारा प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।

सरकार को ऐसी विधियो का निर्माण करना चाहिए जिनका उददेश्य किसी सम्प्रदाय विशेष का हित संरक्षण न होकर सार्वजनिक हित हो।

साम्प्रदायिक भावनाएं फैलाने वाले व्यक्तियों को कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए।

सर्वधर्म सम्मेलनो का आयोजन करके धार्मिक सहिष्णुता का प्रचार करने वाले समाज सुधारको को सम्मानित और पुरस्कृत करना चाहिए।

शिक्षा राजनीतिक संस्थाओ, नौकरियो में साम्प्रदायिक आधार पर कोई भेदभाव नही बरता जाना चाहिए।

शिक्षा के प्रचार प्रसार द्वारा अशिक्षित जनता को साम्प्रदायिकता के दुष्परिणमो से अवगत कराया जाना चाहिए।

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