Hindi, asked by REETURAJ5598, 11 months ago

संपादक के नाम आरक्षण पर पत्र। Sampadak ko letter in hindi

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Answered by Anonymous
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प्रणाम मित्र रितु राज, मैंने आपके उत्तर का जवाब दिया है अगर आपको या उत्तर पसंद आता है तो इसे ब्रेनलिएस्ट मार कर दीजिए और थैंक्स दे दीजिए|

सेवा में,

संपादक महोदय

हिन्दुस्तान टाइम्स

नई दिल्ली।

विषय : आरक्षण की समीक्षा

महोदय,

हम मंडल आयोग की स्थापना का कि पिछड़े वर्गों के लिए नौकरियों में आरक्षण आधार जाति को माना जाए कड़े शब्दों में विरोध करते हैं। हमें आश्चर्य तथा दुःख है कि आयोग ने पिछड़ेपन को परिभाषित करते समय आर्थिक आधार की उपेक्षा कर दी तथा इसके स्थान पर सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के बहाने जाति और सरकारी नौकरियों में समुचित स्थान के अभाव को ही कसौटी के रूप में स्वीकार किया है। हमारा मानना है कि आर्थिक रुप से संपन्न जातियां आयोग की कसौटियों पर खरी उतरने के बावजूद पिछड़ी नहीं कही जा सकती। निसंदेह इस तथ्य को किसी के समर्थन की आवश्यकता नहीं है की संपन्नता और प्रभुता एक-दूसरे की बहनें हैं। इसलिए हमारा यह विश्वास स्वाभाविक ही है कि संपन्न व्यक्ति जाति अथवा वर्ग अनाथ अथवा पिछड़ा हुआ नहीं होता बल्कि समर्थ तथा समाज में अपनी बात मनवाने की क्षमता से संपन्न होता है। इसके ठीक विपरीत स्थिति आर्थिक रूप से पिछड़े व्यक्ति की होती है¸ यह अपने आप से स्पष्ट है।

मंडल आयोग ने पिछड़ेपन को परिभाषित करने के लिए आर्थिक आधार का सहारा लेने के स्थान पर जाति को आधार बनाकर एक घातक भूल की है। हमें डर है कि इससे जातिवाद की व्यतीत धारणा को नया जीवन मिलेगा तथा देश और समाज में विघटन का नया दौर शुरू हो जाएगा।

देश को लोकतांत्रिक समाजवादी धर्मनिरपेक्ष वर्गहीन तथा जातिहीन समाज में परिवर्तित करना हम सबका संवैधानिक कर्तव्य है। इन आदर्शों को भारतीय पुनर्जागरण काल से लेकर स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न चरणों में अनुभूत तथा अर्जित किया गया है। भारत की जाति व्यवस्था को देश के पतन का एक प्रमुख कारण मानते हुए ‘जाति छोड़ो’ आंदोलन भी हुए हैं। राजा राममोहन राय¸ स्वामी दयानंद¸ गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर¸ स्वामी विवेकानंद¸ महात्मा गांधी¸ फूले¸ बाबा साहब अंबेडकर जैसे राष्ट्रीय नेताओं ने एक स्वर में जाति प्रथा की भर्त्सना की है। हमारा विश्वास है कि जाति प्रथा को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में बढ़ावा देना इन महान आत्माओं का अपमान तथा राष्ट्रीय और संवैधानिक आदर्शों की खुलेआम अवहेलना है।

हमें दुख भी है और आश्चर्य भी कि सरकार पिछड़ेपन को आर्थिक आधार पर परिभाषित कर सकने की संभावना को मानते हुए भी मंडल आयोग के संदर्भ में उस पर विचार नहीं करना चाहती। इस मामले में हम सवर्णों के लिए आरक्षण के सिलसिले में सरकार की घोषणा की तरफ ध्यान खींचना चाहेंगे। सरकार से हमारा अनुरोध है कि पिछड़ेपन के निर्धारण के लिए आर्थिक स्थिति को ही एकमात्र मानदंड के रूप में स्वीकार करके वह इस विवाद को विवेकसम्मत ढंग से अंतिम परिणति प्रदान करे।

हम इस दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य से पूरी तरह अवगत हैं कि देश में रोजगार के अवसर अपर्याप्त होने के कारण युवा शक्ति का पूरा लाभ नहीं उठाया जा रहा है लेकिन यह स्थिति रोजगार के अवसर बढ़ाने की मांग करती है¸ ना कि सीमित अवसरों के राजनीतिकरण की। कहने की आवश्यकता नहीं है परंतु वास्तविक लोकप्रियता देश में समृद्धि के व्यापक विस्तार का ही परिणाम हो सकती है¸ मौजूदा साधनों के बंदरबांट की नहीं और दुख यही है कि चुनावी गणित को ऐतिहासिक आवश्यकता की संज्ञा देकर सरकार ने अपने संवैधानिक दायित्व को ताक पर रख दिया है।

फिर भी हमारा यह विश्वास है कि अगर सरकार अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों को त्यागने के लिए तैयार हो जाए तो मंडल आयोग की सिफारिशों से उत्पन्न विवादों को आम राय से हल किया जा सकता है। हमारा प्रस्ताव है कि 1991 की जनसंख्या गणना के आधार पर आयोग की सिफारिशों का फिर से आकलन किया जाए ना कि 1930 के आधार पर माना जाए। रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए विकास की गति तेज करनी होगी और इसके लिए भूमि सुधारों को अविलंब लागू किया जाना बहुत जरूरी है और आरक्षण के संदर्भ में लिंग भेद के आधार पर सदियों से शोषित नारी के लिए भी आरक्षण के लिए विचार किया जाना चाहिए।

भवदीय

(अ0ब0स)

Answered by coolthakursaini36
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Answer:

Explanation:

सेवा में,

श्रीमान संपादक महोदय,

नवभारत प्रकाशन

नई दिल्ली।

विषय:- आरक्षण से उत्पन्न समस्याएं

महोदय,

आपके रोज छपते लेख समाज में फैली कुरीतियों, बुराइयों और भ्रष्टाचार पर एक कड़ा प्रहार होता है। आप समाज को एक नई दिशा देने का बहुत ही सराहनीय कार्य कर रहे हैं। लेकिन महोदय मैं आपका ध्यान आरक्षण की इस बीमारी की तरफ भी आकर्षित करना चाहता हूं। आज हमारे देश का आरक्षण आर्थिक न हो करके जातिगत हो गया है जो देश में खतरनाक बीमारी की तरह फैलता ही जा रहा है।

जब तक देश से जातिगत आरक्षण को समाप्त ना किया गया तब तक ना तो देश में जात पात की भावना मिटेगी और ना ही पिछड़े और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का विकास हो सकेगा। जो प्रतिभाशाली नौजवान है वह जातिगत आरक्षण के कारण अपनी जगह पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। जिस कारण प्रतिभाशाली नौजवानों में आरोष पनप रहा है जो समाज और देश के लिए हितकर नहीं है।

महोदय, अगर शीघ्र ही इस आरक्षण रूपी दानव को समाप्त नहींकिया गया तो यह देश पतन के गर्त में गिरता ही जाएगा क्योंकि लोग आरक्षण के लिए कट-मर रहे हैं, आंदोलन कर रहे हैं जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

अत: आरक्षण जातिगत ना हो करके आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए होना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि आप इस गंभीर विषय पर चिंतन करके सकारात्मक लेख लिखेंगे ताकि लोगों में राष्ट्र हित की भावना जागृत हो सके और आरक्षण को लोग मन से निकाल दें।

धन्यवाद।

निवेदक

क ख ग

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