Hindi, asked by rushi3794, 2 months ago

संपन्नता के विकास के साथ रंगोली की परंपरा में क्या बदलाव हुए?​

Answers

Answered by wwwsurajgupta3933
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Answer:

रंगोली भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा और लोक-कला है।[1] अलग अलग प्रदेशों में रंगोली के नाम और उसकी शैली में भिन्नता हो सकती है लेकिन इसके पीछे निहित भावना और संस्कृति में पर्याप्त समानता है। इसकी यही विशेषता इसे विविधता देती है और इसके विभिन्न आयामों को भी प्रदर्शित करती है। इसे सामान्यतः त्योहार, व्रत, पूजा, उत्सव विवाह आदि शुभ अवसरों पर सूखे और प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता है। इसमें साधारण ज्यामितिक आकार हो सकते हैं या फिर देवी देवताओं की आकृतियाँ। इनका प्रयोजन सजावट और सुमंगल है। इन्हें प्रायः घर की महिलाएँ बनाती हैं। विभिन्न अवसरों पर बनाई जाने वाली इन पारंपरिक कलाकृतियों के विषय अवसर के अनुकूल अलग-अलग होते हैं। इसके लिए प्रयोग में लाए जाने वाले पारंपरिक रंगों में पिसा हुआ सूखा या गीला चावल, सिंदूर, रोली,हल्दी, सूखा आटा और अन्य प्राकृतिक रंगो का प्रयोग किया जाता है परन्तु अब रंगोली में रासायनिक रंगों का प्रयोग भी होने लगा है। रंगोली को द्वार की देहरी, आँगन के केन्द्र और उत्सव के लिए निश्चित स्थान के बीच में या चारों ओर बनाया जाता है। कभी-कभी इसे फूलों, लकड़ी या किसी अन्य वस्तु के बुरादे या चावल आदि अन्न से भी बनाया जाता है।

Answered by singhsamarjot326
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Explanation:

आज संपन्नता और आधुविकता के विकास के साथ रंगोली सजाने की परंपरा में बदलाव हुआ है कि आज कल रंगोली बनाने के लिए शुभ अवसर की प्रतिक्षा नहीं की जाती अपितु किसी भी अवसर पर रंगोली बनाकर उसे शुभ बना दिया जाता है. किसी भवन का लोकार्पण हो या किसी वस्तु का प्रचार प्रसार का दिन. रंगोली की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है.आज कल तो शादियों और पार्टीयो पर भी रंगोली बनाई जाती है.

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