सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाक़ू की तरह है जिसमे सिर्फ ब्लेड है. यह इसका प्रयोग करने वाले के हाथ से खून निकाल देता पर निबंध 1000 words
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【सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाक़ू की तरह है जिसमे सिर्फ ब्लेड है. यह इसका प्रयोग करने वाले के हाथ से खून निकाल देता है ।】
★★★★ रविंद्र नाथ टैगोर★★★★ जी के द्वारा लिखित है ।
और जो वास्तव में काफी हद तक सच भी हैं ।
मित्र हम जब कोई भी फ़ैसला लेते हैं, किसी नतीजे पर पहुंचते हैं तो उससे पहले हमारे दिमाग में द्वंद्व चल रहा होता है- सहज बोध और तार्किकता के बीच. इस द्वंद्व में जिसकी जीत होती है, हमारा नतीजा उसी से प्रभावित होता है.
अगर आप ये सोचने लगे हों कि आप तार्किकता से फ़ैसले लेते रहे हैं तो एक मिनट ठहरिए क्योंकि वैज्ञानिक आधार पुष्टि करते हैं कि दिमाग में सहज बोध वाला हिस्सा कहीं ज़्यादा शक्तिशाली होता है.
हम लोगों में से ज़्यादातर लोग मानते हैं कि हम तार्किकता से फ़ैसले लेते हैं लेकिन ज़्यादतर मामलों में ऐसा होता नहीं है.
प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डेनियल काहनेमन ने इंसानी दिमाग के इसी पहलू को भांपने पर काम शुरू किया जिसने आगे चलकर उन्हें नोबेल पुरस्कार दिलाया.
उन्होंने अपने काम में इंसानी ग़लतियों को आधार बनाया. ये अचानक हुई ग़लतियां नहीं हैं बल्कि ऐसी ग़लतियां हैं जो हम सब करते हैं, हमेशा और इसका एहसास भी नहीं होता है ।।