सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः।
आतुरस्य भिषङ् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः।।please every you can me help
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सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः।
आतुरस्य भिषङ् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः।।
श्लोक का अर्थ : श्लोक में विभिन्न व्यक्तियों के मित्रों के विषय में बताया गया है।
युधिष्टर कहते है कि परदेश में रहते हुए व्यक्ति का मित्र दल होता है , मित्र से अलग अकेले रहने पर कष्ट होते है | गृहस्थ जीवन में पत्नी सबसे बड़ी मित्र होती है , वह सुख और दुःख दोनों अवस्थाओं में सदा साथ देती है | रोगी का मित्र वैध होता है , वही उसके शरीर को निरोग करके जीवन को सुखमय बनाता है | शरीर को छोड़कर जब प्राणी जाता है , इस प्राणी के द्वारा किए गए दान परलोक में उसका साथ देते है | दान उसका मित्र होता है जो साथ जाता है |
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