सारे दरबारी तेनालीराम से क्यों चिढ़ते थे?
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तेनालीराम ने एक सेवक को बुलाकर उसके कान में कुछ शब्द कहे। सेवक तुरंत दरबार से चला गया। अब तो दरबार मे सन्नाटा छा गया। सभी यह देखने के लिए उत्सुक थे कि कैसे तेनालीराम राजा को दो हाथ धुंआ देता है। तभी सेवक शीशे की बनी दो हाथ लंबी नली लेकर दरबार मे हाज़िर हुआ। तेनालीराम ने उस नली का मुंह धूपबत्ती से निकलते धुंए पर लगा दिया। थोड़ी ही देर में शीशे की नली धुंए से भर गयी और तेनाली ने नली के मुहँ पर कपडा लगा दिया और उसे महाराज की ओर करते हुए कहा महाराज ये लीजिए दो हाथ धुआं। यह देख महाराज के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी और उन्होंने तेनाली से नली ले ली और दरबारियों की तरफ देखा। सब के सिर नीचे झुके हुए थे। लेकिन दरबार में कुछ दरबारी ऐसे भी थे जो तेनालीराम के पक्ष में थे। उन सब की आँखों में भी तेनाली के लिए प्रशंसा के भाव थे। तेनालीराम की बुद्धिमानी और चतुराई देख, राजा बोले- अब तो आप मान गए होंगे की तेनालीराम की बराबरी कोई नही कर सकता। दरबारी भला क्या बोलते, वो सब चुप सुनते रहे।
महाराज कृष्णदेव के दरबार में दरबारियों से लेकर राजगुरु तक तेनालीराम से चिढ़ते थे। तेनालीराम को नीचा दिखाने के उद्देश्य से एक मंत्री ने खड़े होकर कहा – महाराज! आपके इस दरबार मे बुद्धिमान और चतुर लोगो की कमी नहीं।