Biology, asked by anitarajak369, 4 months ago

सार्वजनिक उपक्रम के कोई चार दोष बताइये।​

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Answered by januu519
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Answer:

Explanation:

सार्वजनिक उपक्रम को कई नामों से सम्बोधित किया जाता है । इन्हें राजकीय उपक्रम, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, राष्ट्रीय कृत उपक्रम, सरकारी उद्यम, सार्वजनिक उद्यम आदि नामों से भी जाना जाता है । वास्तव में ये ऐसे उपक्रम हैं, जिनकी स्थापना सरकार द्वारा जनहित में सरकारी कोष से धन प्रदान करके की जाती है ।

सार्वजनिक उपक्रम से आशय एक ऐसे औद्योगिक तथा वाणिज्यिक उपक्रम से है, जिसका स्वामित्व, प्रबन्ध संचालन तथा नियंत्रण केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, केन्द्रीय तथा राज्य सरकार या सरकारी अथवा किसी अन्य सार्वजनिक प्राधिकरण के अधीन है ।

सरकारी उपक्रमों के संगठन का यह सबसे प्राचीनतम प्रारूप है । इस प्रकार के प्रारूप में सम्पूर्ण प्रबन्ध-नियन्त्रण-वित्तीय प्रबन्ध आदि सभी सरकार के हाथों में होता है । इस प्रकार के संगठन का सर्वेसर्वा सम्बन्धित मंत्री ही होता है । साधारणतया इस प्रकार के उपक्रम लाभ कमाने की दृष्टि से नहीं चलाये जाते हैं ।

इस प्रकार के प्रारूपों का चुनाव ऐसे उद्योगों को चलाने के लिए किया जाता है जिसमें गोपनीयता परमावश्यक है । दूसरे शब्दों में सुरक्षा संबंधी उद्योग, सार्वजनिक उपयोग के उद्योग, सैनिक महत्व के उद्योग का संचालन इस प्रकार के संगठन हारा किया जाता है । रेल्वे, पोस्ट एवं टेलीग्राफ तथा प्रतिरक्षा विभाग द्वारा चलाये गये प्रतिष्ठानों के अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार के 20 अन्य प्रतिष्ठान विभागों द्वारा चलाये जाते हैं ।

2. सार्वजनिक निगम:

एम.सी. शुक्ला के अनुसार- ”सार्वजनिक निगम वह संगठित संस्था है, जिसका निर्माण विधान बनाने वाली सभा द्वारा होता है, जिसके निश्चित अधिकार तथा कार्य होते हैं, जो वित्तीय मामलों में पूर्ण स्वतंत्र होती है और जिसकी निश्चित क्षेत्र में या निश्चित प्रकार की वाणिज्यिक क्रिया में कार्य सीमा निर्धारित होती है ।”

 

राजकीय उपक्रमों के संगठन की ‘सार्वजनिक निगम’ पद्धति ने व्यापारिक संगठन के स्वरूपों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है । सार्वजनिक निगम बहुत कुछ संयुक्त पूंजी कम्पनी से मिलता-जुलता होता है । अन्तर केवल इतना होता है कि सार्वजनिक निगम की स्थापना संसद के विशेष अधिनियम के अन्तर्गत की जाती है ।

अधिनियम द्वारा ही उसमें प्रबन्ध तथा संचालन संबंधी विधियों की व्यवस्था की जाती है और यदि निगम को कोई विशेष अधिकार दिये जाते है तो उनका उल्लेख भी इसमें कर दिया जाता है । औद्योगिक रूप से निगम की स्वतंत्र स्थिति होती है ।

निगम के किसी भी कार्य के लिए सरकार को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता और न ही सरकार पर दावा ही किया जा सकता है । निगम के लिए वैधानिक रूप से यह आवश्यक नहीं है कि अपनी नीति निर्धारण करने महत्वपूर्ण मामलों में निर्णय लेने, अधिकारियों की नियुक्ति करने आदि में सरकार से सलाह ले ।

कभी-कभी ऐसा आवश्यक कर दिया जाता है कि सरकार नीति का मार्गदर्शन करे । दामोदर वेली कॉरपोरेशन, औद्योगिक वित्त निगम, इण्डियन एयरलाइन्स कॉरपोरेशन, फूड कॉरपोरेशन आफ इण्डिया, सीमेन्ट कॉरपोरेशन आफ इण्डिया, राष्ट्रीय वस्त्र निगम, जीवन बीमा निगम आदि इसी के अन्तर्गत आते हैं ।

3. कम्पनी प्रारूप:

सार्वजनिक उपक्रमों के संगठन का एक महत्वपूर्ण प्रारूप संयुक्त पूंजी कम्पनी है । सरकारी स्वामित्व होने के कारण इन कम्पनियों को ‘सरकारी कम्पनी’ कहते है । कम्पनी अधिनियम की धारा 617 के अनुसार सरकारी कम्पनी से आशय एक ऐसी कम्पनी से है, जिसकी प्रदत्त अंश पूंजी का कम से कम 51% भाग केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या सरकारी या अंशतः केन्द्रीय और अंशतः एक या अधिक राज्य सरकारी के पास हो ।

सरकारी कम्पनी के अन्तर्गत वह कम्पनी भी शामिल कर ली जाती है जो किसी सरकारी कम्पनी की सहायक कम्पनी हो । सरकार उपक्रम में एक प्रमुख अंशधारी बन जाती है । अंश भारत के राष्ट्रपति के नाम से आवंटित किये जाते हैं । सम्बन्धित मंत्रालय अथवा राज्य के विभाग प्रमुख अंशधारी के अधिकारों का प्रयोग करते हैं ।

भारत इलेक्ट्रोनिक लिमिटेड, हिंदुस्तान मशीन टूल्स, सिन्दरी फर्टिलाइजर फैक्टरी, हिन्दुस्तान शिपयार्ड, हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड, उड़ीसा माइनिंग कॉरपोरेशन, राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम, स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन आदि इसके अन्तर्गत आते हैं ।

4. बोर्ड या मण्डल द्वारा प्रबंध:

राजकीय उपक्रमों के प्रबन्ध एवं संचालन की एक विधि ‘बोर्ड’ संगठन है । इस बोर्ड में विभिन्न संबंधित मंत्रालयों के प्रतिनिधियों को सम्मिलित किया जाता है ।  इसकी स्थापना का उद्देश्य राजकीय उपक्रमों के नियमों से अधिक सुदृढ़ एवं शीस्र निर्णय लेना होता है तथा समन्वय को सरल करना होता है । हमारे देश में कई बोर्ड बनाये गये है, जैसे भाकड़ा कन्ट्रोल बोर्ड, चम्बल कन्ट्रोल बोर्ड, कोयला कन्ट्रोल बोर्ड, ऑल इण्डिया हैन्डीक्राफ्ट्स बोर्ड आदि ।

5. मिश्रित निगम:

मिश्रित निगम से आशय ऐसे निगम से है, जिसके स्वामित्व तथा प्रबन्ध में सरकार तथा निजी क्षेत्र का मिश्रण हो । अर्थात् इनमें पूंजी सरकार तथा निजी क्षेत्र के व्यक्तियों द्वारा लगाई जाती है तथा इसके प्रबन्ध के लिए संचालक मण्डल का चुनाव निजी तथा सरकारी क्षेत्र के अंशधारी करते है । इनकी स्थापना से सार्वजनिक उपक्रमों की सफलता की आशा निजी क्षेत्र के समान की जा सकती है ।

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