‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला' अथवा 'केदारनाथ सिंह' का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन व साहित्यिक परिचय एवं उनकी रचनाओं की काव्यागत विशेषतायें
जीवन परिचय
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार रहे हैं। वह छायावादी युग के प्रमुख कवि रहे हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 1897 ईस्वी में मेदनीपुर (बंगाल) में हुआ था। उनके पिता मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। निराला जी शिक्षा-दीक्षा बंगाल में ही हुई थी। 13 वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह हो गया था और उनकी पत्नी भी एक विद्वान महिला थी। उनके कारण ही निराला जी के मन में हिंदी साहित्य के प्रति रुचि जागृत हुई। निराजी को हिंदी, संस्कृत और बंगला भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। अपनी पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद इन्होंने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पूरी तरह हिंदी साहित्य की सेवा में लग गये। इन्होंने अनेक पत्रों का संपादन भी किया था। निराला जी अत्यंत बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। काव्य रचनाओं के अतिरिक्त इन्होंने अनेक उपन्यास, कहानी, निबंध, आलोचनाएं और संस्मरण भी लिखे हैं। लेखन की हर विधा में इनको महारत हासिल थी।
साहित्यिक परिचय
निराला जी की प्रमुख काव्य कृतियों में परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, आराधना, अर्चना, अपरा, बेला, जूही की कली हैं। निराला जी के उपन्यासों के नाम लिली, चतुरी चमार, सुकूल की बीवी, अप्सरा, अलका, प्रभावती आदि हैं।
निराला की काव्यगत विशेषतायें...
निराला मुक्त, वृत्त परंपरा के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनके काव्यों में भाषा, भाव और छंद तीनों का समन्वय मिलता है। निराला जी स्वामी विवेकानंद के दार्शनिक विचारों से बेहद प्रभावित थे। इनके काव्य में बुद्धि और हृदय अर्थात दिल और दिमाग दोनों का सुंदर समन्वय रहता था। इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय भक्ति का स्वर भी मुखर हुआ है। निराला प्रकृति प्रेमी थे और इनकी रचनाओं में प्रकृति के बारे में अद्भुत चित्रण मिल जाता है। इन्होंने प्रकृति के चित्रण में मानवीय भावों का आरोपण किया है। निराला की भाषा शैली संस्कृत निष्ठ खड़ी बोली रही है। इनकी भाषा में थोड़ा बहुत बांग्ला का प्रयोग भी मिल जाता है। इनकी रचनाओं में अरबी और फारसी की प्रयोग भी मिलता है।