"सूरज डूबने लगा और धीरे-धीरे
ग्लेशियरों में पिघली केसर बहने
लगी। बरफ कमल के लाल फूलों
में बदलने लगी, घाटियाँ गहरी पीली हो गई। अंधेरा
होने लगा तो हम उठे और मुंह-हाथ धोने और
चाय पीने लगे। पर सब चुपचाप थे, गुमसुम, जैसे
सबका कुछ छिन गया हो, या शायद सबको
कुछ
ऐसा मिल गया हो, जिसे अंदर ही अंदर सहेजने में सब
आत्मलीन हों या अपने में डूब गए हों।"
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How peaceful!!!!!!!!!!!!!!
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