सूरसागर ' का सबसे चर्चित प्रसंग है
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सूरसागर, ब्रजभाषा में महाकवि सूरदास द्वारा रचे गए कीर्तनों-पदों का एक सुंदर संकलन है जो शब्दार्थ की दृष्टि से उपयुक्त और आदरणीय है। इसमें प्रथम नौ अध्याय संक्षिप्त है, पर दशम स्कन्ध का बहुत विस्तार हो गया है। इसमें भक्ति की प्रधानता है।
इसके दो प्रसंग
- "कृष्ण की बाल-लीला'
- "भ्रमर-गीतसार' अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
सूरसागर में लगभग एक लाख पद होने की बात कही जाती है। किन्तु वर्तमान संस्करणों में लगभग पाँच हजार पद ही मिलते हैं। विभिन्न स्थानों पर इसकी सौ से भी अधिक प्रतिलिपियाँ प्राप्त हुई ह तक है इनमें प्राचीनतम प्रतिलिपि नाथद्वारा (मेवाड़) के सरस्वती भण्डार में सुरक्षित पायी गई हैं। दार्शनिक विचारों की दृष्टि से "भागवत' और "सूरसागर' में पर्याप्त अन्तर है।
सही उत्तर है...
► भ्रमर गीत
स्पष्टीकरण:
‘सूरसागर’ का सबसे चर्चित प्रसंग है, ‘भ्रमरगीत’।
भ्रमरगीत प्रसंग में उस प्रसंग का वर्णन है, जब श्रीकृष्ण ने अपने दूत और सखा उद्धव को गोपियों के लिये योग और वैराग्य का संदेश देकर ब्रज भेजा था।
‘सूरसागर’ हिंदी की भक्तिकालीन धारा के प्रसिद्ध कवि ‘सूरदास’ द्वारा रचित ग्रंथ है। ‘सूरसागर’ सूरदास का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है, जिसमें उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की महिमा का गुणगान किया है। इस ग्रंथ का सबसे चर्चित प्रसंग ‘भ्रमरगीत’ है।
‘भ्रमरगीत’ काव्य की एक परंपरा है। जिसमें एक भ्रमर यानि भंवरे को प्रतीक या सूत्रधार बनाकर काव्य की रचना की जाती है। ‘सूरदास’ का ‘भ्रमरगीत’ प्रसंग सबसे अधिक प्रसिद्ध है।
सूरदास के अलावा सूरदास के समकालीन कवियों में नंददास, परमानंद दास आदि ने भ्रमरगीत की अपने अपने ग्रंथों में रचना की है। कई रीतिकालीन कवियों ने भी भ्रमरगीत की रचना की है। आधुनिक काल के कवियों से भी अनेक कवियों ने भ्रमरगीत की रचना की है, जिनमें मैथिलशरण गुप्त और रत्नाकर का नाम प्रमुख है।
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