सूरदास अब धिर धरही क्यों मरजादा न लही " भाव स्पष्ट करे
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गोपियां कृष्ण ने प्रेम करती थी पर जब श्रीकृष्ण ने ही उन्हें उद्धव के माध्यम से योग साधना का संदेश भिजवा दिया था तब उन्हे ऐसा लगा था की कृष्ण के द्वार उन्हे त्याग देने से तो उनकी पूरी मर्यादा ही नष्ट हो गई थी।
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सूरदास अब धिर धरही क्यों मरजादा न लही " भाव निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया है।
- दिया गया प्रसंग सूरदास जी के पद से है
- गोपियों को श्री कृष्ण से अति प्रेम था। वे श्री कृष्ण के विरह में व्याकुल थी। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें श्री कृष्ण के प्रेम से वंचित होना पड़ेगा।
- उद्धव ने उन्हें निर्गुण भक्ति का ज्ञान दिया। उद्घव के इस ज्ञान ने गोपियों के धैर्य को नष्ट कर दिया। वे पूरी तरह से निराश हो गई थी तथा उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे उनकी मर्यादा पूरी तरह से नष्ट हो गई थी।
- श्रीकृष्ण के प्रेम के कारण उन्होंने सुख चैन खो दिया था, उन्होंने उस प्रेम के कारण घर तथा बाहर विरोध किया तथा अपनी मान मर्यादा की परवाह भी नहीं की थी। जब श्री कृष्ण ने ही उद्घव के माध्यम से उन्हें योग साधना संदेश भेजा तो उन्हें लगा कि श्री कृष्ण ने उन्हें त्याग दिया है तथा कृष्ण के त्याग देने से उनकी मर्यादा का नाश हो गया है तथा प्रतिष्ठा मिट गई है।
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