सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट क्यों माने जाते हैं?
Answers
सूरदास जी को वात्सल्य रस का सम्राट इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपनी रचनाओं में वात्सल्य प्रधान भावों का बड़ी तन्मयता से प्रयोग किया है। उन्होंने यशोदा और कृष्ण के बीच ममता एवं वात्सल्य का बड़ी मुखरता से मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। उन्होंने श्रंगार एवं शांत रस का बड़ी सूझबूझ से प्रयोग किया है।
Explanation:
सूरदास का हिंदी साहित्य में एक अलग ही स्थान रहा है। वह कृष्ण के प्रति भक्ति धारा वाली रचनाओं के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। वे हिंदी साहित्य के सूर्य के समान कवि माने जाते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वह जन्म से ही अंधे थे और उन्होंने जन्मांध होकर भी अति सुंदर भक्ति रस से भरी रचनाओं की रचना की।
Answer:
सूरदास जी वात्सल्य रस
Explanation:
सूरदास जी को वात्सल्य रस का सम्राट इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपनी रचनाओं में वात्सल्य प्रधान भावों का बड़ी तन्मयता से प्रयोग किया है। उन्होंने यशोदा और कृष्ण के बीच ममता एवं वात्सल्य का बड़ी मुखरता से मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। उन्होंने श्रंगार एवं शांत रस का बड़ी सूझबूझ से प्रयोग किया है।
सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।सूरदास की जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद है। "साहित्य लहरी' सूर की लिखी रचना मानी जाती है। इसमें साहित्य लहरी के रचना-काल के सम्बन्ध में निम्न पद मिलता है -
मुनि पुनि के रस लेख । दसन गौरीनन्द को लिखि सुवल संवत् पेख ।।
इसका अर्थ संवत् 1607 वि० माना जाता है, अतएवं "साहित्य लहरी' का रचना काल संवत् 1607 वि० है। इस ग्रन्थ से यह भी प्रमाणित होता है कि सूर के गुरु श्री बल्लभाचार्य थे। इस आधार पर सूरदास का जन्म सं० 1535 वि० के लगभग ठहरता है, क्योंकि बल्लभ सम्प्रदाय की मान्यता है कि बल्लभाचार्य सूरदास से दस दिन बड़े थे और बल्लभाचार्य का जन्म उक्त संवत् की वैशाख् कृष्ण एकादशी को हुआ था। इसलिए सूरदास की जन्म-तिथि वैशाख शुक्ला पंचमी, संवत् 1535 वि० समीचीन मानी जाती है। उनकी मृत्यु संवत् 1620 से 1648 वि० के मध्य मान्य है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् 1540 वि० के सन्निकट और मृत्यु संवत् 1620 वि० के आसपास मानी जाती है। 'चौरासी वैष्णव की वार्ता' के आधार पर उनका जन्म रुनकता अथवा रेणु का क्षेत्र (वर्तमान जिला आगरान्तर्गत) में हुआ था। मथुरा और आगरा के बीच गऊघाट पर ये निवास करते थे। बल्लभाचार्य से इनकी भेंट वहीं पर हुई थी। "भावप्रकाश' में सूर का जन्म स्थान सीही नामक ग्राम बताया गया है। वे सारस्वत ब्राह्मण थे और जन्म के अंधे थे। "आइने अकबरी' में (संवत् 1653 वि०) तथा "मुतखबुत-तवारीख' के अनुसार सूरदास को अकबर के दरबारी संगीतज्ञों में माना है।
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