Hindi, asked by harshitmanocha13, 4 months ago

सूरदास के पदों में कृष्ण भक्ति समाहित है। आप 50 शब्दों में लिखिए कि इसके क्या कारण हो सकते है।

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Answered by 123nidhi29
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भक्ति धारा के महान कवि सूरदास की जन्म तिथि और जन्मस्थान को लेकर साहित्यकारों में काफी मतभेद है. फिर भी ग्रंथों से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर माना जाता है कि महाकवि सूरदास का जन्म साल 1535 में वैशाख शुक्ल पंचमी को रुनकता नामक गांव में हुआ था. यह गांव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है. उनके पिता का नाम रामदास था. वह भी एक गीतकार थे. कहा जाता है कि सूरदास जन्मांध थे, पर इसका भी कोई प्रमाणिक साक्ष्य नहीं मिलता.  भगवद भक्ति में लीन रहने वाले सूरदास ने अपने को पूरी तरह से कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दिया था. मान्यता है कि कृष्णभक्ति के चलते उन्होंने महज 6 साल की उम्र में अपने पिता की आज्ञा लेकर घर छोड़ दिया था. इसके बाद से ही वे युमना तट के गौउघाट पर रहने लगे. कहते हैं जब वह भगवान कृष्ण की लीला भूमि वृन्दावन धाम की यात्रा पर निकले तो उनकी मुलाकात बल्लभाचार्य से हुई. महाकवि सूरदास ने बल्लभाचार्य से ही भक्ति की दीक्षा प्राप्त की. सूरदास और उनके गुरु वल्लभाचार्य के बारे में रोचक तथ्य यह भी है कि गुरु - शिष्य की आयु में महज 10 दिन का अंतर था. कुछ विद्वान गुरु बल्लभाचार्य का जन्म 1534 में वैशाख् कृष्ण एकादशी को को मानते हैं, इसीलिए कई सूरदास का जन्म भी 1534 की वैशाख शुक्ल पंचमी को मानते हैं.कहते हैं, गुरु बल्लभाचार्य, अपने शिष्य सूरदास को अपने साथ गोवर्धन पर्वत मंदिर पर ले जाते थे, जहां वे श्रीनाथ जी की सेवा करते थे, और हर दिन नए पद बनाकर इकतारे के माध्यम से उसका गायन करते थे. बल्लभाचार्य ने ही सूरदास को 'भागवत लीला' का गुणगान करने की सलाह दी. इससे पहले वह केवल दैन्य भाव से विनय के पद रचा करते थे.सूरदास की कृष्ण भक्ति के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं. एक कथा के मुताबिक, एक बार सूरदास कृष्ण की भक्ति में इतने डूब गए थे कि वे एक कुंए जा गिरे, जिसके बाद भगवान कृष्ण ने खुद उनकी जान बचाई और उनके अंतःकरण में दर्शन भी दिए. कहा तो यहां तक जाता है कि जब कृष्ण ने सूरदास की जान बचाई तो उनकी नेत्र ज्योति लौटा दी थी. इस तरह सूरदास ने इस संसार में सबसे पहले अपने आराध्य, प्रिय कृष्ण को ही देखा था.कहते हैं कृष्ण ने सूरदास की भक्ति से प्रसन्न होकर जब उनसे वरदान मांगने को कहा, तो सूरदास ने कहा कि मुझे सब कुछ मिल चुका है, आप फिर से मुझे अंधा कर दें. वह कृष्ण के अलावा अन्य किसी को देखना नहीं चाहते थे.महाकवि सूरदास के भक्तिमय गीत हर किसी को मोहित करते हैं. उनकी पद-रचना और गान-विद्या की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी. साहित्यिक हलकों में इस बात का जिक्र किया जाता है कि अकबर के नौ रत्नों में से एक संगीतकार तानसेन ने सम्राट अकबर और महाकवि सूरदास की मथुरा में मुलाकात भी करवाई थी.सूरदास की रचनाओं में कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम और भक्ति का वर्णन मिलता है. इन रचनाओं में वात्सल्य रस, शांत रस, और श्रंगार रस शामिल है. सूरदास ने अपनी कल्पना के माध्यम से कृष्ण के अदभुत बाल्य स्वरूप, उनके सुंदर रुप, उनकी दिव्यता वर्णन किया है. इसके अलावा सूरदास ने उनकी लीलाओं का भी वर्णन किया है.सूरदास की रचनाओं में इतनी सजीवता है, जैसे लगता है उन्होंने समूची कृष्ण लीला अपनी आंखों से देखी हो. महाकवि सूरदास द्वारा लिखित 5 ग्रंथों में सूर सागर, सूर सारावली और साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती और ब्याहलो शामिल हैं. सूरसागर उनका सबसे मशहूर ग्रंथ है. इस ग्रंथ में सूरदास ने श्री कृष्ण की लीलाओं का बखूबी वर्णन किया है. इस ग्रंथ में सवा लाख पदों का संग्रह होने की बात कही जाती हैं, लेकिन अब केवल सात से आठ हजार पद ही बचे हैं. सूरसागर की 1656 से लेकर 19वीं शताब्दी के बीच तक सिर्फ 100 प्रतियां ही मिल पाई हैं. सूरसागर के 12 अध्यायों में से 11 संक्षिप्त रूप में और 10वां स्कन्ध काफी विस्तार से मिलता है.सूरसारावली भी सूरदास का एक प्रमुख ग्रंथ है. इसमें कुल 1107 छंद हैं. कहते हैं कि सूरदास जी ने इस ग्रंथ की रचना 67 साल की उम्र में की थी. यह पूरा ग्रंथ एक 'वृहद् होली' गीत के रूप में रचा गया था. इस ग्रंथ में भी कृष्ण के प्रति उनका अलौकिक प्रेम दिखता है. साहित्यलहरी भी सूरदास का अन्य प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ है. साहित्यलहरी 118 पदों की एक लघुरचना है. इस ग्रंथ की खास बात यह है कि इसके आखिरी पद में सूरदास ने अपने वंशवृक्ष के बारे में बताया है, जिसके अनुसार सूरदास का नाम 'सूरजदास' है और वह चंदबरदाई के वंशज हैं. सूरदास जी का यह ग्रंथ श्रृंगार रस की कोटि में आता है. नल-दमयन्ती सूरदास की कृष्ण भक्ति से अलग एक महाभारतकालीन नल और दमयन्ती की कहानी है, तो ब्याहलो सूरदास भी एक अन्य मशहूर ग्रन्थ हैं. कहा जाता है कि सूरदास 100 वर्ष से अधिक उम्र तक जीवित रहे.

Answered by manojchauhanma2
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सूरदास हिन्दी के भक्तिकाल के महान कवि थे। हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास हिंदी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं। सूरदास जन्म से अंधे थे या नहीं, इस संबंध में विद्वानों में मतभेद है। [1]

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