Hindi, asked by marvindkumar8259, 10 months ago

सूरदास प्रभु इंद्र नीलमणि मे कौन सा अलंकार आ

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Answered by harishsharmaji0001
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Answer:

सूरदास

सूरदास का जन्म 1478 में मथुरा के निकट रुनकता गांव में हुआ। सूरदास वल्लभाचार्य के शिष्य थे। उनकी मृत्यु पारसौली ग्राम में हुई। सूर भक्तिकाल के कृष्ण भक्ति शाखा के सर्वोत्कृष्ट कवि थे। उन्होंने मूलत: वात्सल्य रस, श्रंगार रस और शांत रस में रचनाएं की हैं। उनके विनय के पद भी अव्दितीय हैं। भ्रमरगीत मे वियोग का अतिसुंदर चित्रण है। इसमें गोपियों व्दारा उध्दव की हंसी उड़ाने तथा व्यंग्य करने के भी बहुत अच्छे प्रसंग हैं। सूर का श्रंगार अत्यंत स्वच्छ तथा भक्ति से मिला हुआ है। आचार्य हज़ारी प्रसाद व्दिवेदी ने उनके संबंध में लिखा है – ‘‘सूरदास जब अपने प्रिय विषय का वर्णन शुरू करते हैं तो मानो अलंकार-शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे-पीछे दौड़ा करता है। उपमाओं की बाढ़ आ जाती है, रूपकों की वर्षा होने लगती है।’’ सूरदास जी ने कुछ दृष्टकूट पद भी लिखे हैं जिनके अर्थ गूढ़ हैं। सूरदास जी के पदों की एक विशेषता यह भी है कि वे गाये जा सकते हैं और इन्हें अनेक प्रसिध्द गायकों ने शास्त्रीय रागों में गाया है। सूरदास जी के प्रमुख ग्रंथ सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयंती और ब्याहलो माने गये हैं, जिनमें अंतिम दो उपलब्ध नहीं हैं। कहते हैं कि सूरसागर में सवा लाख पद थे, परन्तु अब लगभग आठ हज़ार ही मिलते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि सूर जन्म से अंधे थे, परंतु अनेक विव्दान इससे सहमत नहीं हैं क्योंकि कोई जन्म से अंधा व्यक्ति प्रकृति का इतना सुंदर चित्रण नहीं कर सकता।

सूर के पदों में वात्सल्य -

राग धनाक्षरी में सुंदर पद देखिये –

जसोदा हरि पालनैं झुलावै।

हलरावै दुलरावै मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै॥

मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै।

तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै॥

कबहुं पलक हरि मूंदि लेत हैं कबहुं अधर फरकावैं।

सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै॥

इहि अंतर अकुलाइ उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।

जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ सो नंद भामिनि पावै॥

इस सुंदर लोरी पर पद्मश्री गुरु रंजना गौहर का नृत्य यू-ट्यूब पर देखने के लिये अपनी डिवाइस पर

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