History, asked by chaudharyannu917, 5 months ago


संस्कृति के क्षेत्र में राष्ट्रवाद की अवधारणा किस प्रकार प्रकट हुई?​

Answers

Answered by Anonymous
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Answer:

[सरल शब्‍दों में; पूर्व में, भारतवर्ष के विभिन्‍न प्रदेशों में अलग-अलग स्‍वाधीन राज्‍य थे। राजनीतिक दृष्टि से विभिन्‍न राज्‍यों में विभक्‍त होते हुए भी सांस्‍कृतिक दृष्टि से पूरा भारतवर्ष एक राष्‍ट्र माना जाता था। यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहां से/अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा/कुछ बात है कि हस्‍ती मिटती नहीं हमारी/सदियों रहा है दुश्‍मन दौरे जहां हमारा- यह जो ‘कुछ बात है’ यह हमारी सांस्‍कृतिक निष्‍ठा ही है।

भारत की एकता और अखंडता का आधार सांस्‍कृतिक एकता है इसलिए यह स्‍वाभाविक है भारतीय राष्‍ट्रवाद को सांस्‍कृतिक राष्‍ट्रवाद की संज्ञा दी जाए।]

Explanation:

Answered by akshayfastinfo85
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१. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद राष्ट्रिय पहचान का सभ्यतामूलक आधार और नागरिक जीवन का चरम उत्कर्ष है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद समान विरासत से उदभासित समुदायों का गठजोर है जो एक जैसा स्वप्न जीते है और एक जैसा भविष्य पसंद करते हैं।

२.भारत में राजनीतिक राष्ट्रीयता की अवधारणा सही मायने में फलीभूत हुई 1947 में आजादी मिलने के बाद…आजादी के पहले बेशक करीब दो सौ साल तक अंग्रेजों का राज रहा, लेकिन पूरे देश पर उनका राजनीतिक एकाधिकार जैसा कुछ नहीं था। विदेश, रक्षा और मुद्रा जैसी कुछ चीजें उन्होंने अपने हाथ में रखी थी। लेकिन राज यानी शासन उनके अलावा करीब 600 सौ रजवाड़ों-जमींदारों-रियासतों के हाथ में था। फिर अगर हम अपने हजारों साल पुराने संकल्प मंत्रों में जंबू द्वीपे की बात ना सिर्फ दक्षिण-पूरब-पश्चिम और उत्तर बल्कि आज के पाकिस्तान और बांग्लादेश के इलाकों में भी करते हैं तो इसका मतलब साफ है कि भारतवर्ष की राष्ट्रीय अवधारणा राज पर आधारित नहीं, बल्कि संस्कृति पर आधारित रही है। 1947 के बाद संस्कृतिआधारित राष्ट्र की अवधारणा में राज का भी आधार शामिल हो गया..1947 के पहले हमारे पुरखे राजनीतिक आधार पर भारत में तमाम अलगावों के बावजूद भी इसे एक राष्ट्र के तौर पर स्वीकार कर लेते थे..लेकिन आजादी के बाद संस्कृति के आधार में राज का आधार इतने गहरे तक संपृक्त हो गया कि अब राष्ट्रीयता की अवधारणा संस्कृति के साथ राज पर भी आधारित हो गई है..दुर्भाग्य यह है कि हमारे कुछ मित्र इस तथ्य को जानने-समझने के बावजूद राष्ट्र की संस्कृति आधारित अवधारणा को कूपमंडूकता का पर्याय मानते रहे हैं।

३.भारत संघ 1984 मामले में निर्णय देते हुए उच्‍चतम न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश जस्टिस पीएन भगवती और अमरेंद्र नाथ तथा जस्टिस रंगनाथ मिश्र ने कहा था- ”यह इतिहास का रोचक तथ्‍य है कि भारत का राष्‍ट्र के रूप में अस्तित्‍व बनाए रखने का कारण एक समान भाषा या इस क्षेत्र में एक ही राजनैतिक शासन का जारी रहना नहीं है, बल्कि सदियों पुरानी चली आ रही एक समान संस्‍कृति है। यह सांस्‍कृतिक एकता है, जो किसी भी बंधन से अधिक मूलभूत और टिकाऊ है, जो किसी भी देश के लोगों को एकजुट करने में सक्षम है और जिसने इस देश में एक राष्‍ट्र के सूत्र में बांध रखा है।

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