संस्कृत में श्लोक लिखकर भेजिए सिक्स क्लास के लिए
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कि जब भी मनुष्य परिश्रम करता है तो वह दुखी नहीं होता है और हमेशा खुश ही रहता है। उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
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dhanyawad
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षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।।
अर्थ : वैभव और उन्नति चाहने वाले पुरुष को ये छः दोषो का त्याग कर देना चाहिए : नींद, तन्द्रा (ऊंघना), डर, क्रोध, आलस्य तथा दीर्घ शत्रुता (कम समय लगने वाले कार्यो में अधिक समय नष्ट करना)।
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