संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास ने बादल को संदेशवाहक बनाकर 'मेघदूत' नाम का काव्य लिखा है। ‘मेघदूत' के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
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(कालिदास रचित काव्य)
मेघदूतम्
“मेघदूतम्” संस्कृत के महान कवि ‘महाकवि कालिदास’ द्वारा रचित एक काव्य ग्रंथ है, जो कि मूलतः संस्कृत में हैं। हमारे प्राचीन भारत की मुख्य बोलचाल की भाषा संस्कृत ही थी। कालिदास के काल में संस्कृत आम व्यवहार में प्रयुक्त होती थी।
“मेघदूतम्” में मुख्यतः एक यक्ष की कथा है, जिसे धन के देवता कुबेर जो कि स्वयं एक यक्ष हैं, वो अलकापुरी से निष्काषित कर देते हैं। अपने निष्कासन के पश्चात् यक्ष रामगिरि पर्वत को अपना निवास स्थान बना लेता है। वर्षा ऋतु का आगमन होता है तो उसे अपनी प्रेयसी की याद सताने लगती है। अपनी प्रेयसी की विरह-वेदना में कामातुर होकर यक्ष ये विचार करने लगता है कि वो अपनी प्रेयसी तक अपना संदेश कैसे पहुँचाये, क्योंकि अलकापुरी से निष्कासित होने के कारण वो स्वयं अपनी प्रेयसी के पास नही जा सकता है। ऐसी स्थिति में यक्ष किसी संदेश वाहक के माध्यम से अपना संदेश अपनी प्रेयसी तक पहुँचाने का विचार करता है। कोई और संदेशवाहक न मिलने कि स्थिति में वो मेघों को ही अपना दूत अर्थात बादलों को ही अपना संदेशवाहक बनाने का निश्चय करता है।
यहाँ पर कालिदास ने काव्य सौंदर्य का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हुये मेघों के माध्यम से संदेश देने का प्रसंग रचकर अपनी कल्पना का विस्तार दिया है, और एक अद्भुत एवं अप्रतिम ग्रंथ की रचना कर डाली है।
“मेघदूतम्” काव्य संग्रह दो भागो में है। पहले भाग का नाम ‘पूर्वमेघ’ है तो दूसरे भाग का नाम ‘उत्तरमेघ’ है। पहले भाग में यक्ष का निष्कासन, रामगिरि पर्वत पर निवास, बादलों से संवाद और बादल को रामगिरि से अलकापुरी तक मार्ग बताने के प्रसंगों का वर्णन हैं। दूसरे भाग में यक्ष की विरह-वेदना का वर्णन और एक प्रेमी हृदय के भावों का वर्णन है। पूरे ग्रंथ में लगभग 111 पद हैं।
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