संस्कृति संवेगों की अभिव्यक्ति को कैसे प्रभावित करती हैं?
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संस्कृति संवेगों की अभिव्यक्ति को प्रभावित करती हैं| अध्ययनों से यह पता चलता है की अधिकांश मूल संवेग सहज या जन्मजात होते है उन्हें सिखाना नहीं पड़ता है | अधिकांशत मनोवैज्ञानिक यह विश्वास करते है की संवेगों , विशेषकर चेहरे की अभिव्यक्तियों के प्रबल जैविक संबंध होते है |
उदाहरण के लिए
जो बालक जो जन्म से दृष्टिहीन हैं तथा जिन्होंने दूसरों को मुसकुराते नहीं देखा , या दूसरों का चेहरा कभी नहीं देखा| वह भी उसी प्रकार मुसकुराते है और जैसे सामान्य दृष्टि वाले बालक |
विभिन्न संस्कृतियों की तुलना करने यह पता चलता है की संवेगों में अधिगम की प्रमुख भूमिका होती है |
प्रथम सांस्कृतिक अधिगम संवेगों में की अभिव्यक्ति प्रभावित करता है, उदाहरण के लिए कुछ संस्कृतियों में मुक्त संवेगिक अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित किया जाता है , जबकि कुछ दूसरी संस्कृतियां , माडलिंग तथा प्रबलन के द्वारा व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से अपने संवेगों को सीमित रूप से प्रकट करना सिखाती है|
द्वितीय अधिगम उन निर्भर करता है जो संवेगिक प्रतिक्रियाएं जनित करते है| यह वह व्यक्ति है जो लिफ्ट , मोटर गाड़ी इत्यादि के प्रति डर को प्रदर्शित करते है|
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