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शांति से भी दुखों का अंत हो जाता है और शांत चित्त मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है।
शांति से भी दुखों का अंत हो जाता है और शांत चित्त मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है।2. क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो?
शांति से भी दुखों का अंत हो जाता है और शांत चित्त मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है।2. क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो?किससे व्यर्थ में डरते हो?
शांति से भी दुखों का अंत हो जाता है और शांत चित्त मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है।2. क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो?किससे व्यर्थ में डरते हो?कौन तुम्हें मार सकता है?
शांति से भी दुखों का अंत हो जाता है और शांत चित्त मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है।2. क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो?किससे व्यर्थ में डरते हो?कौन तुम्हें मार सकता है?आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है ।
शांति से भी दुखों का अंत हो जाता है और शांत चित्त मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है।2. क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो?किससे व्यर्थ में डरते हो?कौन तुम्हें मार सकता है?आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है ।3. हर काम का फल मिलता है-' इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है।'
शांति से भी दुखों का अंत हो जाता है और शांत चित्त मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है।2. क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो?किससे व्यर्थ में डरते हो?कौन तुम्हें मार सकता है?आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है ।3. हर काम का फल मिलता है-' इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है।'4. विषयों का चिंतन करने से विषयों की आसक्ति होती है। आसक्ति से इच्छा उत्पन्न होती है और इच्छा से क्रोध होता है।क्रोध से सम्मोहन और अविवेक उत्पन्न होता है।
शांति से भी दुखों का अंत हो जाता है और शांत चित्त मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है।2. क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो?किससे व्यर्थ में डरते हो?कौन तुम्हें मार सकता है?आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है ।3. हर काम का फल मिलता है-' इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है।'4. विषयों का चिंतन करने से विषयों की आसक्ति होती है। आसक्ति से इच्छा उत्पन्न होती है और इच्छा से क्रोध होता है।क्रोध से सम्मोहन और अविवेक उत्पन्न होता है।5. संयम का प्रयत्न करते हुए ज्ञानी मनुष्य के मन को भी चंचल इंद्रियां बलपूर्वक हर लेती हैं। जिसकी इंद्रियां वश में होती है, उसकी बुद्धि स्थिर होती है।
Explanation:
shyness, demureness, mortification, diffidence, servility, obedience, lowliness, bashfulness, resignation, passiveness, timidity, meekness, submissiveness, unpretentiousness, abasement, reserve, subjection, self-abasement, sheepishness, nonresistance.