संसार में ऐसे मनुष्य भी होते हैं, जो अपने आमोद-प्रमोद के आगे किसी की जान की भी परवाह नहीं करते, शायद इसका उसे अब भी विश्वास न आता था । सभ्य संसार इतना निर्मम, इतना कठोर है, इसका ऐसा मर्मभेदी अनुभव अब तक न हुआ था । वह उन पुराने जमाने के जीवों में था, जो लगी हुई आग को बुझाने, मुर्दे को कंधा देने, किसी के छप्पर को उठाने और किसी कलह को शान्त करने के लिए सदैव तैयार रहते थे ।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ अथवा पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(स) बूढ़े भगत को किस प्रकार के मनुष्यों का अनुभव न हुआ था ?
Answers
संसार में …………. तैयार रहते थे ।
(अ) सन्दर्भ : यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ से लिया गया हैं । यह पाठ मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखी गयी हैं । जिसका नाम ‘मंत्र’ है। इसमें लेखक ने व्याप्त विरोधी घटनाओं और भावनाओं के चित्रण द्वारा लोगो को कर्तव्य का बोध कराया है। यहाँ पर लेखक ने एक बूढ़े भगत और डॉ० चड्डा के व्यवहार का अच्छा वर्णन किया है।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या : जब बूढ़ा भगत अपने बीमार बेटे को दिखाने के लिए डॉ० चड्डा के पास आया था । वहाँ डॉ० चड्डा ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपनी मोटर पर सवार होकर वे खेलने चले गये। तब भगत सोचने लगा कि इस संसार में अब ऐसे ही हृदयहीन व्यक्ति हैं, जो अपने मनोरंजन और मजे के सामने दूसरों की जिंदगी की कोई भी चिन्ता नहीं करते हैं। भगत इस तरह के व्यवहार की बिल्कुल भी आशा नहीं करता था। वह प्राचीन मान्यताओं और परम्पराओं को पालने और उसे मानने वाला व्यक्ति था। वह परोपकारी था, जो दूसरों की मदद करने, मुर्दो को कन्धा देने, जैसे कार्य करने मे अपना कर्त्तव्य समझते हैं ।
(स) भगत को यह विश्वास नहीं हो पा रहा था कि संसार में ऐसे लोग भी निवास करते हैं जो अपने मनोरंजन और आमोद-प्रमोद के आगे किसी की भी परवाह नहीं करते हैं।
For more questions
https://brainly.in/question/10761691
https://brainly.in/question/41517245
#SPJ1