संसर्गस्य महत्वं प्रतिपादयत्। (संगति का महत्व प्रतिपादित कीजिए)
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सत्सङ्गति बुद्धेः जडतां हरति। वाचि सत्यं सिञ्चति। सम्मानं वर्धयति। पापं दूरी करोति। चित्तं प्रसन्नं करोति। यशः तनोति। एवं सत्सङ्गति मानवाय सर्वमेव करोति। (सत्संगति बुद्धि की जड़ता को हरण करती है। वाणी में सत्य का संचार करती है। सम्मान बढ़ाती है। पाप दूर करती है। चित्त को प्रसन्न करती है। यश को फैलाती है। इस प्रकार संगति मानव के लिए सब कुछ करती है।)
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सत्सङ्गति बुद्धेः जडतां हरति। वाचि सत्यं सिञ्चति। सम्मानं वर्धयति। पापं दूरी करोति। चित्तं प्रसन्नं करोति। यशः तनोति। एवं सत्सङ्गति मानवाय सर्वमेव करोति। (सत्संगति बुद्धि की जड़ता को हरण करती है। वाणी में सत्य का संचार करती है। सम्मान बढ़ाती है। पाप दूर करती है। चित्त को प्रसन्न करती है। यश को फैलाती है। इस प्रकार संगति मानव के लिए सब कुछ करती है।)
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