संसद को दूसरे sadan की आवश्यकता क्यों है
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18वीं सदी की बात है. अमेरिका का संविधान लिखा जा रहा था. संसद कैसी हो, इस पर बहस चल रही थी. देश के दो सबसे ताकतवर नेताओं के बीच. जॉर्ज वॉशिंगटन (इन्हीं के नाम पर यूएस की राजधानी का नाम है) और थॉमस जेफरसन (इन्हीं की शक्ल 2 डॉलर के नोट पर छपती है). दोनों एक मुद्दे पर आकर अटक गए. संसद में सदन की व्यवस्था का मुद्दा. वॉशिंगटन दो सदनों वाली व्यवस्था के पक्ष में थे. लोकप्रिय सदन कांग्रेस (जैसे अपनी लोकसभा) और विद्वानों का सदन सेनेट (जैसे अपनी राज्यसभा). लेकिन जेफरसन को लगता था कि दूसरा सदन रखने का कोई मतलब नहीं है.
एक दिन जेफरसन और वॉशिंगटन नाश्ते पर मिले. जेफरसन हाल में फ्रांस के दौरे से लौटे थे. वहां की बातें बता रहे थे. तभी कॉफी सर्व की गई. जेफरसन कॉफ़ी पीने से पहले उसको कप से निकालकर सॉसर में डाल रहे थे. सॉसर छोटी उथली प्लेट होती है. वॉशिंगटन ने कारण पूछ लिया.
जेफरसन ने कहा,
‘मैं कॉफी को ठंडा कर रहा हूं. मेरा गला पीतल का नहीं है.’
वॉशिंगटन ने बात पकड़ ली. बोले,
‘इसलिए. हम अपने कानूनों को सेनेट के सॉसर में डाल कर ठंडा करते हैं’.
जेफरसन को बात समझ में आ गई. कि कानून हमेशा जनता के दवाब में तुरत-फुरत न बनें. उन पर ठंडे दिमाग से बहस हो. क्योंकि इनका स्वरूप कमोबेश स्थायी और सब पर असर करने वाला होता है.
इस तरह अमेरिका में संसद के दो सदन बने. हाउस ऑफ़ रिप्रजेंटेटिव्स और सेनेट. जॉर्ज पहले राष्ट्रपति बने. जेफरसन दूसरे उपराष्ट्रपति और फिर तीसरे राष्ट्रपति.
किस्सा खतम. अब भारत लौटते हैं.
हमारी संसद का नया सत्र शुरू होता है तो सबकी नजर लोकसभा पर ज्यादा होती है. लोकप्रिय सदन. सीधे जनता के चुने सांसद. मगर नवंबर, 2019 में नजारा बदला था. 18 नवंबर से लेकर 13 दिसंबर, 2019 तक चलने वाला शीत सत्र शुरू हुआ तो निगाहें राज्यसभा की तरफ. वजह. ये राज्यसभा का 250 वां सत्र था. इस लेख में हम आपको राज्यसभा की शुरुआत, उसकी खासियतों के बारे में बताएंगे. हम कॉफी को जरूरत भर ठंडा करने वाली इस व्यवस्था के बारे में बताएंगे.
सात क्विक फैक्ट्स
1. राज्यसभा की स्थापना 3 अप्रैल, 1952 को और इसकी पहली बैठक उसी बरस 13 मई को हुई.
2. 1954 तक इसका नाम काउंसिल ऑफ स्टेट्स होता था. फिर इसे राज्यसभा कहा जाने लगा.
3. राज्यसभा का चेयरमैन हमेशा ही देश का उपराष्ट्रपति होता है.
4. राज्यसभा कभी भंग नहीं होती. कभी इसका कार्यकाल पूरा नहीं होता. ये स्थायी सदन है. इसके एक तिहाई सदस्य हर दो साल में रिटायर हो जाते हैं, उनकी जगह नए आ जाते हैं. सदन पूरी तरह से नया कभी नहीं होता. अनुभव और उत्साह का संतुलन बरकरार रहता है.
5. राज्यसभा सांसद का कार्यकाल छह बरस का होता है. अगर किसी सदस्य ने इस्तीफा दे दिया तो बाईइलेक्शन होगा. तब कार्यकाल उतना ही होगा, जितना ऑरिजिनल में बचा था.
6. राज्यसभा में मैक्सिमम 250 सांसद हो सकते हैं. 12 मेंबर्स राष्ट्रपति के द्वारा चुने जाते हैं. फिलहाल राज्यसभा की स्ट्रेंथ 245 सदस्यों की है.
7. राज्यसभा का सांसद बनने के लिए मिनिमम उम्र 30 वर्ष होनी चाहिए.
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