सृष्टि का आधार किसे कहा गया है?
Answers
Answer:
ईसाइयत में समय की एक गति के रूप में परिकल्पना की गई है, जिसके अनुसार सृष्टि की एक निश्चित शुरुआत तथा अंत है। यह एक सर्वव्यापी सर्वज्ञ ईश्वर की रचना है। हिंदू धर्म के अनुसार सृष्टि अनादि काल से आरंभ विलय का विषय रहा है। यह अनंतकाल तक ऐसा ही रहेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार सृष्टि की रचना एक सर्वव्यापी विस्फोट के साथ हुई, जिसे वह बिग-बैंग की संज्ञा देते हैं। इसके कारण ब्रह्माण्ड अब भी विस्तार पा रहा है। इसके अतिरिक्त विभिन्न दार्शनिक व्यक्तिगत स्तर पर भी इस प्रश्न का उत्तर देने में प्रयासरत दिखाई पड़ते हैं। दसवीं शताब्दी में भारतीय दार्शनिक उद्यन अपने ग्रंथ न्यायकुसुमांजलि में कहते हैं कि जिस प्रकार संसार की सभी वस्तुएं अपनी रचना तथा विकासक्रम के लिए किसी अन्य बुद्धिमान जीव पर निर्भर करती हैं, उसी प्रकार पृथ्वी भी एक वस्तु के समान है, जिसकी सृष्टि तथा विकासक्रम किसी सर्वज्ञ तथा सर्वशक्तिमान सत्ता पर निर्भर करता है तथा इस सत्ता का नाम ईश्वर है। दो शताब्दी पश्चात कुछेक बदलाव के साथ लगभग यही युक्ति ईसाई विचारक संत अक्वाइनस भी प्रस्तुत करते हैं। वहीं मत्स्य पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना एक सुनहरे गर्भ में ब्रह्मा के प्रवेश कर जाने के फलस्वरूप हुई है। इसी गर्भ को हिरण्यगर्भ की संज्ञा दी गई है, जबकि सांख्य दर्शन सृष्टि की रचना की गुत्थी को पुरुष तथा प्रकृति नामक दो शाश्वत तत्वों के आधार पर सुलझाने का प्रयास करता है। सांख्य दर्शन के अनुसार पुरुष शुद्ध चेतन स्वरूप है तथा प्रकृति तमस, रजस तथा सत्व नामक त्रिगुणों से युक्त अचेतन तत्व है। सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व प्रकृति के तीनों गुण एक संतुलन की स्थिति में शांत अवस्था में विद्यमान रहते हैं। किंतु अनादि काल में पुरुष की प्रकृति से निकटता के कारण ये तीन तत्व कम्पायमान अवस्था में आकर सृष्टि का निर्माण करने लगते हैं। इस दर्शन के अनुसार जब पुरुष अथवा शुद्ध चैतन्य, प्रकृति के इस नृत्य अथवा क्रीड़ा से स्वयं को तटस्थ कर स्वयं में लीन हो जाता है तब वह कैवल्य अथवा मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।