सितारवादक पंडित रविशंकर पर निबंध लिखिये
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पण्डित रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल 1920 को बनारस (अब वाराणसी) में हुआ था । बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मे रविशंकर का जन्म स्थान पूर्वी बंगाल में था, जो विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान में चला गया और अब बांग्लादेश का हिस्सा है।
1946 से पण्डित रविशंकर ने स्वतन्त्र रूप से संगीत की रचना शुरू कर दी तथा फिल्मों के लिए संगीत देने लगे । तब तक उनके संगीत की रेकार्डिंग एच.एम.वी. के भारतीय संगीत खण्ड के लिए हो चुकी थी । 1950 में पण्डित रविशंकर आल इण्डिया रेडियो के संगीत निर्देशक बन गए ।
जल्दी ही रविशंकर के सितार वादन की ख्याति विदेशों तक पहुँच गई और 1954 में इन्होंने अपना पहला कार्यक्रम भूतपूर्व सोवियत यूनियन में दिया । उसके बाद 1956 में ही उन्हें पश्चिमी देशों में सितार वादन का मौका मिला । इस क्रम में रविशंकर ने मोन्टेरी पॉप फेस्टिवल तथा रॉयल फेस्टिवल हॉल में भी अपना सितारवादन प्रस्तुत किया ।
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पंडित रवीन्द्र शंकर का पूरा नाम रवीन्द्र शंकर चौधरी था | पं रवि शंकर का जन्म उत्तरप्रदेश के बनारस में 7 अप्रैल, सन् 1920 को हुआ था। उनका आरंभिक जीवन काशी में ही व्यतीत हुआ | उनके पिता प्रतिष्ठित बैरिस्टर थे और राजघराने में उच्च पदस्थ थे। रविशंकर जब केवल दस वर्ष के थे तभी संगीत के प्रति उनका लगाव शुरू हुआ। उन्होंने बचपन में कला जगत में प्रवेश एक नर्तक के रूप में किया था तथा अपने बड़े भाई उदय शंकर के साथ कई नृत्य कार्यक्रम किये। सितार के लिए उन्होंने नृत्य छोड़ दिया । 1939 में उनका पहला कार्यक्रम मंच पर, दर्शकों के बीच प्रस्तुत हुआ । 1944 में उनकी संगीत शिक्षा पूरी होने के बाद वह मुंबई चले आए । 1946 से पण्डित रविशंकर ने स्वतंत्ररूपेण संगीत की रचना की तथा फिल्मों के लिए संगीत दिया । 1950 में वे आल इण्डिया रेडियो के संगीत निर्देशक बन गए । जल्दी ही रविशंकर के सितार वादन की ख्याति विदेशों तक पहुँच गई और उसके बाद में उन्हें पश्चिमी देशों में सितार वादन का अवसर मिला । इस क्रम में रविशंकर ने मोन्टेरी पॉप फेस्टिवल तथा रॉयल फेस्टिवल हॉल में भी अपना सितारवादन प्रस्तुत किया । केलीफोर्निया के वुडस्टाक फेस्टिवल में रविशंकर को सितारवादन के लिए आमन्त्रण प्राप्त हुआ था । उनके साथ तबले पर संगत उस्ताद अल्लारखा कर रहे थे । 1971 में पं. रविशंकर की भेंट जॉर्ज हैरिसन से हुई जो बांग्ला देश में एक संगीत सभा के संयोजकों में से एक थे । वहाँ रविशंकर ने उनके साथ मिलकर बांग्ला देश के लोगों की सहायतार्थ कार्यक्रम किया जो उन्हें बाद में उत्तरी अमेरिका तक ले गया । 1969 में पण्डित रविशंकर ने अंग्रेजी में आत्मकथा लिखी : ‘माई म्यूजिक माई लाइफ’। रविशंकर ने अठारह वर्ष की उम्र में अपने गुरु अलाउद्दीन खान की पुत्री सुकन्या से विवाह किया था । बाद में एक अन्य विदेशी लड़की सूजोन्स से इनका विवाह हुआ । पण्डित रविशंकर रागों के पक्के अनुशासन में रहने वाले संगीतकार थे फिर भी उसमें बँधे रहने के बावजूद उन्होंने बहुत-सी नवीन संगीत लहरीयों को उत्पन्न किया । 1956 में उनका ‘थ्री रागाज’ का एलबम आया । 1964 में ‘रागाज एण्ड ताल्स’ में उनके सितार की स्वर लहरी संचित हुई । उनके खास सम्मेलनों के रिकॉर्ड तथा उनके चुने हुए रागों का संकलन, चालीस के आस-पास हैं । वर्ष 2007 में ‘फ्लावर्स ऑफ इण्डिया’, 2005 में ‘द मैन एण्ड हिज म्यूजिक’ तथा 1987 में ‘तन-मन’ ने पण्डित रविशंकर के संगीत का उत्कर्ष प्रस्तुत किया । फिल्मों में भी पण्डित रविशंकर का काम विश्वस्तरीय माना गया । बांग्ला के अतिरिक्त विदेशी फिल्मों को भी उनके संगीत ने कही न कहीं छुआ था । 1966 में जोनाथन मिलर के निर्देशन में पण्डित रविशंकर ने ‘एलिस इन वन्डरलैण्ड’तथा सत्यजित राय की ‘अ ट्रियोलॉजी’ के लिए संगीत रचना की । रिचर्ड एटेनबरो की फिल्म ‘गाँधी’ में भी रविशंकर का संगीत था । लोकप्रिय देशभक्ति गीत ‘सारे जहाँ से अच्छा’ भी पण्डित रविशंकर भी उनके द्वारा संगीतबद्ध किया गया जो आज भी लोकप्रिय है ।
पण्डित रविशंकर की संगीत रचना ने भक्ति संगीत में भी अपना स्थान बनाया था। इनके भक्ति संगीत ने हैरिसन को भी मंत्रमुग्ध किया । 1997 में ‘चैन्ट्स ऑफ इण्डिया’ में रविशंकर तथा हैरिसन की संगीत प्रतिभा प्रकट हुई है । भक्ति संगीत को रविशंकर भारतीय संस्कृति से जोड़ कर परखते थे ।
रविशंकर ने भारतीय संगीत को पश्चिम तक पहुँचाया | रवि शंकर का जन्म मानो सितार-वादन के लिए ही हुआ था । रविशंकर को विदेशों में बहुत अधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई । विदेशों में वे अत्यन्त लोकप्रिय एवं सफल रहे।
पण्डित रविशंकर ने अनेकों पुरस्कार पाए । उन्हें भिन्न-भिन्न संस्थानों से डॉक्टरेट की पदवी प्राप्त हुई । 1986 में वह राज्य सभा के सदस्य भी रहे । वर्ष 1999 में पण्डित रविशंकर को भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत किया गया था ।
भारतीय संगीत की परम्परा में गायन तथा वादन में रागों का विशेष स्थान है । अलग-अलग तरह के राग अलग-अलग समय और मौसम के अनुकूल बजाये जाते हैं तथा इनमें किसी भी मनोभाव को अभिव्यक्त करने की शक्ति होती है | इन रागों का प्रभाव जितना मनोरम है इन्हें प्रस्तुत कर पाना उतना ही मुश्किल है । पण्डित रविशंकर ने सितार के द्वारा इन रागों की सूक्ष्मता को समझा और उन्हें अपने वादन के जरिये समूचे विश्व को मंत्रमुग्ध कर दिया |
मशहूर सितार वादक पंडित रविशंकर का 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। अमेरिका में सैन डिएगो के अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली ।