संत समागम हरि कथा तुलसी दुर्लभ दोय सूत दारा अरु लक्ष्मी पापी के भी हो ॥ अर्थ बताइए
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संत समागम हरि कथा तुलसी दुर्लभ दोय ।। अर्थात् पुत्र-पुत्री परिवार-पत्नी, धन-दौलत आदि तो पापी के घर भी हुआ करता है इसलिये यह बहुत बड़़ी बात नहीं है- इसीलिये इसकी कोई खास मर्यादा नहीं है कि हमें तो कई पुत्र-पुत्री हैं, काफी सुन्दर पत्नी है, अपार धन-सम्पदा है । हम भरे-पूरे घर-परिवार वाले हैं। हम काफी धन-दौलत वाले हैं ।
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भावार्थ ,,, हे तात स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाय, तो भी वे सब मिलकर ( तराजू के दूसरे पलड़े में रखे हुए ) उस सुख के बराबर नहीं हो सकते , जो लव यानि क्षण मात्र के "सत्संग" यानि प्रभु की संगत से होता है !
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