Hindi, asked by aakashsingh7477001, 6 months ago

संतो देखा जा बैराना
साँच कहो तो भारन द्यावे, झूठ जग पतियान
प्रस्तुत पद कहाँ से अवतरित और इसके रचनाकार
कौन है?​

Answers

Answered by drrajeshmhrm
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Answer:

कबीर साहेब ने जीवन पर्यंत धार्मिक और सामजिक आडम्बरों का ना केवल विरोध किया बल्कि लोगों का सत्य आचरण की और मार्ग भी प्रशस्त किया। अपने जीवन की परवाह ना करते हुए धार्मिक और सामंती ठेकेदारों के कारनामों से लोगों को बताकर उन्हें भी सत्य मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। साहेब की आवाज सदा ही समाज के दबे कुचले लोगों की आवाज बनी रही। धार्मिक पाखंड हो या सामाजिक सभी का खंडन कबीर साहेब ने किया है। साहेब का जो मूल सन्देश है वह यह है की आडम्बर और मिथ्या आचरण का त्याग करो और जो सत्य की राह है उस पर चलो, मानव जीवन तभी सार्थक होगा। मनुष्य को मनुष्य समझना ही सबसे बड़ा धर्म है और कल्याण का मार्ग है।

हम तौ एक एक करि जाना।

दोइ कहैं तिनहीं कौ दोजग जिन नाहिंन पहिचाना ।।

एकै पवन एक ही पानीं एकै जोति समाना।

एकै खाक गढ़े सब भांडै़ एकै कोंहरा साना।।

जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।

सब घटि अंतरि तूँही व्यापक धरै सरूपै सोई।।

माया देखि के जगत लुभांनां काहे रे नर गरबाना।

निरभै भया कछू नहिं ब्यापै कहै कबीर दिवाना।।

कबीर के पद शब्दार्थ (Hum to Ek Ek Kari Jana) : हम तो एक-एक ईश्वर, दोई-दो, तिनहीं-उनको, दोजग-दोझक, नर्क ,नाहिंन-नहीं, एकै-एक, पवन-वायु, जोति-प्रकाश, समाना-व्याप्त होना, खाक-मिट्टी, समाप्त हो जाना, गढ़े-रचे हुए, भांडे-बर्तन, कोहरा-कुम्हार, साना-एक साथ मिलकर, बाढ़ी-बढ़ई, लकड़ी का कारीगर, काष्ट-लकड़ी, अगिनि-अग्नि, घटि-घड़ा और हृदय, अंतरि-अन्दर (चित्त), अंदर, व्यापक-विस्तृत, धरे-रखे, सरूपै-स्वरूप, सोई-वही, जगत-संसार, लुभाना-मोहित होना, नर-मनुष्य, गरबाना-घमंड करना, निरभै-निर्भय होना, निडर, भया-हुआ, दिवानां-बैरागी।

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