History, asked by daminic19, 1 month ago

स्थूल अर्थशास्त्र के कारण काय आहेतुम अर्थशास्त्र मनजे काय याची आंसर ​

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Answered by AbhilabhChinchane
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Answer:

उसमें क्या चीज़ मूल्यवान है? आप यह कैसे बताएँगे कि क्या महत्वपूर्ण है और क्या नहीं? स्थूल अर्थशास्त्र में महत्वपूर्ण क्या है या जानने योग्य क्या है, इसका पता आपको स्वयं को एक अलग-थलग व्यक्ति के रूप में देखकर नहीं चलेगा। इसका ज्ञान व्यक्ति आधारित ‘आत्म-अवलोकन’ से प्राप्त नहीं होगा। परस्पर विरोधी हितों वाले पक्षों - जैसे विक्रेता और खरीददार के बीच रणनीतिक जानकारी का फर्क, एक गैर-पारदर्शी सरकार जिसके पास नागरिकों से छिपाने को काफी कुछ हो, जिस चीज़ का सम्बन्ध खेल सिद्धान्त (game theory) से है - जैसे कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो सूक्ष्म अर्थशास्त्र की सारी बातों का सम्बन्ध एक व्यक्ति से - मुझसे या आपसे - होता है। यह व्यक्ति तथाकथित रॉबिंसन क्रूसो नामक अमूर्त ‘पद्धति-जनित व्यक्ति’ है जो पड़ोसियों अथवा समाज से अलग-थलग है या बहुत कम प्रभावित होता है। एक व्यक्ति क्या खरीदता है? वह क्या चीज़ है जो वह नहीं खरीदता? अपने बजट की सीमाओं में वह निर्णय कैसे करे, वगैरह? (आप यह सवाल नहीं पूछते कि बजट की सीमाएँ कैसे पैदा होती हैं।) सूक्ष्म अर्थशास्त्र इसी की बात करता है। यानी कोई व्यापारी या गृहिणी या उपभोक्ता या उत्पादक जो बाज़ार में अकेले अलग-थलग कामकाज करे। यह जानकारी कब हमें गुमराह करती है? यह वह सवाल है जो स्थूल अर्थशास्त्र (macro-economics) के कोर को परिभाषित करने के लिए पूछा जाना चाहिए।

इस दृष्टि से देखें तो स्थूल अर्थशास्त्र का मतलब यह नहीं है कि जब एक व्यक्ति था तो वह सूक्ष्म था और यदि आप उसे बढ़ाकर दस या दस लाख व्यक्ति कर देंगे तो उनका योग स्थूल हो जाएगा। यदि आप दस व्यक्ति ले लें तो बात दस गुना बड़ी हो जाएगी मगर वह स्थूल अर्थशास्त्र नहीं बन जाएगी! इसके बावजूद, फिलहाल जो स्थूल अर्थशास्त्र है वह ठीक यही करता है, और यह एक समस्या है। स्थूल अर्थशास्त्र के इस नज़रिए में जिस रूपक का इस्तेमाल किया जाता है वह है एक प्रतिनिधि-मूलक, असम्भाव्य रूप से तार्किक और लाभ को अधिकतम बनाने को आतुर व्यक्ति का। यह नज़रिया आजकल कुछ प्रतिष्ठित पश्चिमी विश्वविद्यालयों में काफी लोकप्रिय है। यदि आप यह देखें कि वहाँ कोर स्थूल अर्थशास्त्र में क्या चल रहा है, तो पाएँगे कि उसमें ढेर सारा गणित है और वह गणित अधिकतम बनाने को उता डिग्री ऐसे तार्किक व्यक्ति के आधार पर निकलता है जो सर्वथा अलग-थलग काम करता है और उसके पास बहुत लम्बा (वास्तव में अन्तहीन) समय है और बाज़ार से उसकी कड़ी महज़ उसके बजट और प्रचलित कीमतों के ज़रिए है। आप एक ऐसे अधिकतम बनाने को उत्सुक व्यक्ति की कल्पना करते हैं और फिर कहते हैं कि ऐसे व्यक्तियों की एक बड़ी संख्या है। सिद्धान्तों की यह किस्म इसी तरह काम करती है। एक प्रतिनिधिमूलक व्यक्ति में द का गुणा कर दीजिए, तो बस हो गया। ‘पद्धतिगत व्यक्तिवाद’ इसी तरह काम करता है, और हाल के वर्षों में स्थूल अर्थशास्त्र के क्षेत्र में कई नोबेल पुरस्कार दिए गए हैं क्योंकि इसका असरदार गणित एक सुगठित बाज़ार अर्थ-व्यवस्था में ‘राज्य के हस्तक्षेप से मुक्त व्यक्तिगत चुनाव की स्वतंत्रता’ को आधुनिक पूँंजीवाद के एक कामकाजी मॉडल के तौर पर महिमामण्डित करता है। मगर यह एक गलत प्रस्थान बिन्दु है। उम्मीद की जानी चाहिए कि हालिया संकट हमें यह देखने को विवश करेगा कि यह एक गलत नज़रिया है।

फिर भी, ज़ाहिर है, अर्थशास्त्र एक ऐसा विषय है जहाँ गलत नज़रिए वाली और सहजबुद्धि के विपरीत मान्यताएँ चलती रह सकती हैं। ऐसा उनकी प्रासंगिकता के कारण नहीं बल्कि उनके विचारधारात्मक निहितार्थों के चलते और पारितोषिकों व शक्तिशाली निहित स्वार्थों के ज़रिए खुद को जिलाए रखने की उनकी ताकत की वजह से है। आप ज़रूरी बीजगणित सीखकर किसी जाने-माने विश्व-विद्यालय में प्रोफेसरी पा जाएँगे, शायद नोबेल पुरस्कार भी हासिल कर लें। इसके आधार पर आपको एक बौद्धिक सम्मान हासिल होगा ताकि आप उन चीज़ों को प्रचारित कर सकें जो शक्तिशाली निहित स्वार्थ सुनना पसन्द करते हैं। और फिर आप उसी राह पर चलते चले जाते हैं क्योंकि धीरे-धीरे वह आपका भी निहित स्वार्थ बन जाता है।

स्थूल अर्थशास्त्र को समझने की वास्तविक शुरुआत करने के लिए पहली बात यह समझने की है कि स्थूल अर्थशास्त्र संघटन की भ्रान्ति की छानबीन करता है: जो चीज़ व्यक्ति के लिए सत्य है वह समाज के लिए सत्य नहीं होती। कई जगहों पर हम यह सवाल पूछते हैं: सम्पूर्ण क्यों उसके हिस्सों का योग नहीं होता? और यही सवाल वास्तव में स्थूल अर्थशास्त्र की बुनियाद है। पूँजीवादी अर्थ-व्यवस्था के सन्दर्भ में इस सवाल का सबसे बढ़िया जवाब कीन्स (और उनसे कुछ वर्ष पहले स्वतंत्र रूप से पोलैंड के अर्थशास्त्री कालेकी) ने दिया था। निस्सन्देह वे बीसवीं सदी के सबसे प्रभावशाली अर्थशास्त्री हैं। आपको यह समझना होगा कि स्थूल अर्थशास्त्र का सम्बन्ध इसी बात से है कि सम्पूर्ण उसके हिस्सों के योग से भिन्न होता है। क्यों? क्योंकि जो बात व्यक्ति के लिए सत्य है वह समाज के लिए सत्य नहीं होती। कीन्स इसकी व्याख्या कई तरह से करने की कोशिश करते हैं क्योंकि वे जो प्रस्तुत कर रहे थे वह एक अपेक्षाकृत सरल मगर नया विचार था जिसने अर्थशास्त्र की दिशा ही बदल दी।

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