संध्या सुंदरी कविता का वर्णन full kabita ka explanation
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संध्या सुंदरी
संदर्भ - संध्या सुंदरी' कविता छायावादी कवि सूर्य कांत त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा उद्धृत है। निराला जी अपनी कविता जीवन से जुड़ी वस्तुओं का समावेशन करते हैं।
प्रसंग -
संध्या सुन्दरी' कविता में कवि निराला जी दिवासन के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कविता को रचित करते हैं। वह संध्या को एक सुन्दरी के रूप में प्रस्तुत करते हुए उसके सौंदर्य का वर्णन करते हैं। इस प्रकार बताते है रात्रि के समय आसमान बिल्कुल शांत हो जाता है।
व्याख्या-
कवि कहते हैं दिन के ढलने का समय था रात्रि का आगमन हो रहा था कवि संध्या को सुन्दरी के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहते है,संध्या धीरे धीरे आसमान से उतर रही है आस पास चारो ओर शांति है अचंचलता के साथ वो धीरे धीरे उतर रही है अर्थात् संध्या ढल रही है। आसमान में एक तारा दिखना आरम्भ हो गया है, बादलों को सुन्दरी के बाल के समान मन कर कवि कहते है कि गुंघराले बालों के बीच में से एक तारा दिख था है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह तारा हृदय की रानी का अभिषेक कर रहा है। दिन भर काम कर के थकने के बाद आलस्य हावी हो रहा है परन्तु कोमलता की कली शान्ति के साथ ढल रही है। ना ही वह वीणा बजा रही है ना ही कोई राह गा रही है। बस एक आवाज़ ' चुप' है। जगत में शांति छाई हुई है। रात्रि के समय सब सो रहे हैं सरोवर से रहा है, जंगल सो रहा है सब सो रहे हैं। हर जगह शांति है और इस शांति में कवि के मन से से उनका प्रलय गीत निकल जाता है।
विशेष
1) प्राकृत का मानवीकरण है
2) छायावाद प्रवृत्ति का अभास है।
3) तत्सम शब्दों का प्रयोग है।
4) ग्यमता है।
5) चित्रत्मक शैली का प्रयोग है।