संध्या समय दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे। दिन-भर के भूखे थे, लेकिन
जब नाँद में लगाए गए, तो एक ने भी उसमें मुँह न डाला। दिल भारी हो रहा था।
जिसे उन्होंने अपना घर समझ रखा था, वह आज उनसे छूट गया था। यह नया घर,
नया गाँव, नए आदमी, उन्हें बेगानों-से लगते थे।
दोनों ने अपनी मूक-भाषा में सलाह की, एक-दूसरे को कनखियों से देखा और
लेट गए। जब गाँव में सोता पड़ गया, तो दोनों ने जोर मारकर पगहे तुड़ा डाले और
घर की तरफ़ चले। पगहे बहुत मज़बूत थे। अनुमान न हो सकता था कि कोई बैल
उन्हें तोड़ सकेगा; पर इन दोनों में इस समय दूनी शक्ति आ गई थी। एक-एक झटके
में रस्सियाँ टूट गईं।
प्रस्तुत गद्यांश में उपर्युक्त मुहावरे को छाट कर लिखिए
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दिल भारी होना, सोता पड़ जाना.
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