स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास जिज्ञासुओं की भीड़ लगी रहती थी। लोग दूर-दूर से अपनी शंकाओं समस्याओं न प्रश्नों को लेकर उनके पास आते और उनका समाधान चाहते थे । एक दिन एक जिज्ञासु ने कहा भगवान । कृप्या यह बताएं कि कौन से सम्प्रदाय का मार्ग उचित है जिस पर चलकर हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं " स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कुछ देर मौन रहने के बाद, कहा " भाई! एक बहुत बड़ा सभागार है उसके कई द्वार है। सभागार में एक विद्वान महात्मा का प्रवचन होता है लोग दूर-दूर से उनका प्रवचन सुनने के लये आते है हजारों लोग इकट्ठे हो जाते हैं। अंदर वाले श्रोता एक-दूसरे से यह नहीं पूछते कि भाई तुम किस द्वार से आए हो और न कोई यह बताता है की वह अमुक द्वार से आया है , अत: महात्मा का प्रवचन उसके जीवन को सुधर देगा। सभी प्रवचन सुनते है और अपने -अपने ढंग से उसकी व्याख्या कर उस पर चलने की कोशिश करते है। स्वामी जी ने पुनः कहा " यही स्तिथि समस्त सम्प्रदायों और धर्मों की है। प्रत्येक सम्प्रदाय उस विराट पुरुष को पाने की राह बताता है। जो उस रह पर चलते हैं, उन्हें वह प्राप्त होता है और जो केवल राह के अच्छे बुरे की पहचान ने लगे रहते हैं, वे भटक जाते है। " इसी प्रकार एक धनि सेठ चाँदी के रुपयों से भरी थैली लेकर स्वामी जी के पास आया और बोलै "स्वामी जी ! इस थैली को स्वीकार कीजिए और इसकी राशि को परोपकार में लगा दीजिए। " स्वामी जी ने कहा -"बंधुवर! इस माया के जाल में हमें मत फंसाओ। यह धन पाकर मन इसी में रमा रहेगा , जिससे हमारी मानसिक शांति भंग होगी। " धनी ने तर्क दिया "महाराज आप तो परमहंस हैं। सागर की तरंगो पर पढ़कर भी तेल की बून्द स्थिर रहती है और अलग रहती है। " स्वामी जी बोले पर भाई, अच्छे तेल की बून्द भी पानी के सम्पर्क में बहुत दिन तक रहने से अशुद्ध हो जाती है और फिर उसमे से दुर्गन्ध आने लगती है। " i) स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास जिज्ञासु क्यों आया करते थे? [2] ii) जिज्ञासु ने सम्प्रदायों के विषय में क्या पूछा? [2] iii) स्वामी जी ने धर्म व सम्प्रदायों के विषय में क्या कहा? [3] iv) कौन स्वामी जी के पास क्या लेकर आया? उसका उद्देश्य क्या था? [3]
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