Hindi, asked by dev55171, 10 months ago

स्वामी दयानंद के शिक्षा के बारे में कुछ इंफॉर्मेशन​

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Answered by Anubhav555
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Answer:

महर्षि दयानन्द द्वारा प्रवर्तित गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली वैदिक धर्म, संस्कृति व वैदिक विद्याओं की उद्धारक, पोषक, रक्षक व प्रचारक है। यह शिक्षा प्रणाली प्राचीनतम एवं शुभ परिणामदायक होने से विश्व वन्दनीय है। इसके महत्व के कारण इस शिक्षा पद्धति से दीक्षित मनुष्य व ब्रह्मचारी ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव के अनुरूप बनता है।

Answered by PatilSoham
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Explanation:

महर्षि दयानन्द के शिक्षा विषयक मौलिक विचार सत्यार्थ प्रकाश के द्वितीय समुल्लास में संकलित हैं। समुल्लास के विषय का निर्देश करते हुए स्वामी जी लिखते हैं- ‘अथ शिक्षां प्रवक्ष्यामः।’ अर्थात् इस समुल्लास में शिक्षा-सबन्धी विचारों का प्रतिपादन होगा। स्वामी जी ने इस विषय में अपनी विचार-सबन्धी स्पष्टता का प्रशंसनीय परिचय दिया है। उनके विचार उलझे हुए नहीं हैं, सभी मन्तव्य स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किये गए हैं। प्रत्येक मन्तव्य अपने-आप में पूर्ण है। स्वामी जी ने इस समुल्लास में शिक्षा के मूलभूत सिद्धान्तों पर ही अपना मत प्रकट किया है। पाठयक्रम सबन्धी विस्तृत सूचनायें उपस्थित करना उन्हें (द्वितीय समुल्लास में) अभीष्ट नहीं। स्वामी जी के विचार से ज्ञानवान् बनने के लिए निमनलिखित तीन उत्तम शिक्षक अपेक्षित होते हैं- माता, पिता और आचार्य। शतपथ ब्राह्मण का निम्नलिखित वचन उनके उक्त विचार का आधार है। ‘मातृमान् पितृमान् आचार्यवान् पुरुषो वेद।’ अर्थात् वही पुरुष ज्ञानी बनता है, जिसे शिक्षक के रूप में प्रशस्त माता, प्रशस्त पिता तथा प्रशस्त आचार्य प्राप्त हों। बालकों की शिक्षा में तीनों में से किस-किसको कितने समय तक अपना कर्त्तव्य निभाना है, इस विषय में स्वामी जी ने स्पष्ट निर्देश दे दिया है- ‘‘जन्म से 5 वें वर्ष तक बालकों को माता, 6 वें से 8 वें वर्ष तक पिता शिक्षा करे और 9 वें वर्ष के आरा में द्विज अपनी सन्तानों का उपनयन करके विद्यायास के लिए गुरुकुल में भेज दें .....................

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