संवाद - लेखन (कोई एक)
(क) मनुष्य और बादल के बीच।
(ख) मनुष्य और वृक्ष के बीच ।
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वृक्ष – स्वागत है मित्र तुम्हारा ! तुम्हारी प्रतीक्षा में देखो मैं सूखकर काँटा हो गया हूँ।
बादल – वाह ! बातें बनाना खूब आता है तुम्हें ! इस बार आने में देर हो गई, क्षमा चाहता हूँ।
वृक्ष – क्षमा तुम्हें नहीं, इंसान को मॉगनी चाहिए। जिसने प्रकृति के चक्र को तहस-नहस कर डाला है। विकास के नाम पर वातावरण को गरम कर दिया है। तुम बरस कर हमें हरा-भरा रख सको- यह दिनोंदिन मुश्किल होता जा रहा है।
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