Political Science, asked by parimalburman22, 7 months ago

संविधान कितने
प्रकार का होता है
उन देशों के नाम बताइये
जहाँ अलिखित संविधान है।​

Answers

Answered by Prantikghosh
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Answer:संविधान एक प्रकार का हैं : लिखित, लिखित संविधान अधिकतर एक लेख्य (भारतीय संविधान) या कुछ संकलित लेख्य (स्वीडिश संविधान) होते हैं। किंतु जिस रूप में संविधान क्रियान्वित होता है उसकी व्याख्या न कहीं पूर्णतया लिखित होती है, न पूर्णतया अलिखित। इंग्लैंड का संविधान अलिखित माना जाता है किंतु वहाँ भी 1701 ई. में ऐक्ट ऑव सेटेलमेंट, कई रेप्रेजेंटेशन ऑव पीपुल्ज ऐक्ट, 1911 एवं 1949 के पार्लिमेंट ऐक्ट जिनके द्वारा लार्ड सभा के अधिकार सीमित हुए, 1679, 1816 एवं 1862 के हेबीयस कारपस ऐक्ट तथा 1947 ई. में क्राउन प्रोसीडिंग्ज ऐक्ट निर्मित हुए। इन लिखित नियमों का महत्व इंग्लैंड के संविधान में, अलिखित रूढ़ि, परम्परा तथा व्यवहार से तनिक भी कम नहीं है। इसके विपरीत भारत के विस्तृत रूप से लिखित संविधान में भी (जिसका विस्तार 395 धाराओं तथा 12 अनुसूचियों एवं 22 भागो में है) कुछ अलिखित नियम पूरक रूप में मिलते हैं, जैसे विधानसभाओं एवं सदस्यों के विशेषाधिकार, राष्ट्रपति तथा राज्यपाल का मंत्रिपरिषद् से सम्बन्ध, संवैधानिक संकटावस्था एवं राज्यपाल की स्थिति, इन समस्त विषयों के सम्बन्ध में संविधान के अतिरिक्त अलिखित नियम ही लागू होते हैं।

संविधान सम्बन्धी अन्य भेद हैं - नमनशील एवं परिदृढ़, बहुधा इन्हें क्रमशः: अलिखित एवं लिखित के पर्यायवाची रूप में भी प्रयुक्त किया जाता है। लार्ड ब्राइस ने लिखित के स्थान पर परिदृढ तथा अलिखित के स्थान पर नमनशील शब्दों का प्रयोग सहज भाव से किया है। किंतु इस प्रकार का मिश्रित प्रयोग उचित नहीं। वस्तुतः: संविधान लिखित किंतु नमशील हो सकता है और अलिखित किंतु परिदृढ़ रूप का हो सकता है। सिद्धांतत: इंग्लैंड की संसद निमिष मात्र में इंग्लैंड के संविधान में मनोनीत परिवर्तन कर सकती है तथा वहाँ का प्रधान मंत्री मंत्रिमंडल को आमंत्रित न कर मंत्रिमंडलीय शासनपद्धति की इतिश्री कर सकता है, किंतु ऐसे आकस्मिक परिवर्तन कभी व्यवहार में क्रियात्मक नहीं होते। यदि इंग्लैंड के इतिहास की ओर दृष्टिपात किया जाए तो प्रतीत होगा कि परिवर्तन सदा क्रमिक विकास के रूप में हुए है; आकस्मिकता की वहाँ कोई सम्भावना नहीं।

मतप्रदान (वोटिंग), स्वतंत्रता सुधार, लार्ड सभा की सत्ता के हनन सम्बन्धी नियम, तथा युद्धोपरांत अधिराज्य स्वशासन अधिकार (डोमिनियन अधिकार) इन सबके होते हुए भी एक शताब्दी के अभ्यंतर में इंग्लैंड का संविधान अलिखित होकर भी कम परिवर्तन हुए हैं। फलत: इंग्लैंड का संविधान अलिखित होकर भी नमनशील नहीं परिदृढ़ रूप का है। इसके विपरीत भारतीय संविधान परिदृढ़ कहा जाता है, कारण कि इसकी संशोधनक्रिया बड़ी जटिल है, जहाँ किसी किसी विषय में संशोधन के लिये केवल केंद्रीय संसद् का बहुमत ही पर्याप्त नहीं वरन्‌ समस्त राज्यों के विधानमंडलों का बहुमत प्राप्त करना भी अनिवार्य है। ऐसी जटिल व्यवस्था के उपरांत भी पिछले अनेक वर्षो में भारतीय संविधान में अनेक संशोधन हो चुके हैं। इसका कारण यह है कि संशोधन परिवर्त्तन एवं संशोधन का सम्बन्ध केवल संशोधनक्रिया की लिखित व्यवस्था से नहीं वरन्‌ देश की प्रमुख प्रभावात्मक राजनीतिक दलबंदियों के संतोष या असंतोष से होता है। यदि वे वैधानिक रूपरेखा और उसके द्वारा राजनीतिक सत्ता के वितरण से संतुष्ट होती हैं तो परिवर्तन नहीं होते, अन्यथा संशोधन, आवर्तन, परिवर्तन अवश्यंभावी हैं। संवैधानिक संशोधनों का कारण कांग्रेसी सरकारें थीं जिनके नियंत्रण में केंद्रीय तथा लगभग समस्त राज्यों के शासन की बागडोर थी।

अतएव किसी संविधान का रूप नमनशील है अथवा परिदृढ़, यह केवल उस देश का संवैधानिक इतिहास ही स्पष्ट कर सकता है। यदि कहीं परिवर्तन सहज रूप से होते रहे हैं तो उस देश का संविधान नमनशील है, अन्यथा परिदृढ़।

संयुक्त राष्ट्र अमरीका के उदाहरण के उपरांत अधिकतर देशों में लिखित संविधान की प्रथा प्रचलित हो गई है। लिखित संविधान कहीं विधायिका द्वारा निर्मित होते हैं जैसे 'अमरीकन आर्टिकल्ज ऑव कान्फडरेशन' ने अमरीका में तथा ओस्ट्रियो हंगेरियन संघ ने 1867 में ऑस्ट्रिया में किया। इच्छा न होते हुए भी कई सम्राटों एवं राजाओं ने भी उन्नीसवीं शताब्दी में अपने देशों में संविधान रचना की। फ्रांस में 1814 तथा 1830 ई. में तथा 1848 ई. में सारडीनिया में इसी प्रकार वहाँ के सम्राटरचित संविधान घोषित हुए। अन्य संविधान अधिकतर देश की विधानसभाओं द्वारा ही बने, जैसे 1787 ई. में अमरीका तथा 1949 ई. में भारत में संविधान की रचना हुई।

अधिकांशतया उन समस्त देशों में जहाँ लिखित संविधान उपस्थित है, संविधान को देश की अन्य विधियों से अधिक मान्यता दी जाती है। इसका कारण यह है कि संविधान की उत्पत्ति ही इस भावना से हुई है कि शासनप्रबंध में निरंकुशता को अनुशासित तथा सीमित रखा जा सके। शासनप्रबंध संविधान के बंधनों से कितना नियंत्रित होगा अथवा संविधान के बंधनों से कितना नियंत्रित होगा, अथवा संविधान कितना उच्च माना जाएगा, यह संविधाननिर्माताओं के उद्देश्य एवं दृष्टिकोण पर निर्भर करता है कि वह किस विषय में संविधान की कितनी मान्यता एवं सुरक्षा के इच्छुक थे।

भारतीय संविधान की रचना के समय निर्माताओं के सम्मुख कई मूल प्रश्न थे, जैसे नागरिकों कें मूल स्वाधिकारों की सुरक्षा, केंद्र एवं राज्यों के कार्यक्षेत्र की स्पष्ट व्याख्या जिससे दोनों अपनी निर्धारित सीमाओं के अंतर्गत ही विधिव्यवहार सीमित रखें, संविधान का रूप परिदृढ़ रखना, तथा राज्यों में पारस्परिक वाणिज्य व्यवसाय, स्वातंत्र्य की रक्षा इत्यादि। देश में कार्यपालिका या विधायिका के समस्त कार्यों की शुद्धता तथा औचित्य इसी पर निर्भर करता है कि वह देश के संवैधानिक उद्देश्य बन्धनों के अनुकूल है अथवा नहीं, यदि कोई कार्य इन मूल उद्देश्यों के प्रतिकूल होता है तो वह शक्ति बाह्य कहा जाता है। राज्य के सर्वोच्च न्यायलय में जहाँ विधि प्रयुक्ति एवं व्याख्या होती है, अधिकांशत: वहीं यह भी निश्चित होता है कि अमुक विधिनियम शक्तिबाह्य (अल्ट्रा वायर्स) है अथवा नहीं।

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