संवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान का हृदय और आत्मा की संज्ञा क्यों दी गई है
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¿ संवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान का हृदय और आत्मा की संज्ञा क्यों दी गई है ?
✎... संवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान का हृदय और आत्मा की संज्ञा इसलिए दी गई है, क्योंकि संवैधानिक उपचारों का अधिकार कोई विशेष अधिकार ना होकर अन्य मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए प्रयुक्त होता है। यदि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो वह संवैधानिक उपचारों के अधिकार के अंतर्गत न्याय के लिए न्यायालय की शरण ले सकता है। इसी कारण संवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान का हृदय और आत्मा की संज्ञा दी गई थी।
भारतीय संविधान के सूत्रधार डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी यही कहा था कि भारतीय संविधान में संवैधानिक उपचारों के अधिकार का अधिकार संविधान का हृदय और आत्मा है।
भारतीय संविधान में नागरिकों के लिए 6 मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जो कि इस प्रकार हैं...
- स्वतंत्रता का अधिकार
- समानात का अधिकार
- धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
- संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार
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प्रश्न :- संवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान का हृदय और आत्मा की संज्ञा क्यों दी गई है ?
उतर :- संवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान का हृदय और आत्मा की संज्ञा दी गई है क्योंकि संवैधानिक उपचारों का अधिकार स्वयं में कोई अधिकार न होकर अन्य मौलिक अधिकारों का रक्षोपाय है । इसके अंतर्गत व्यक्ति मौलिक अधिकारों के हनन की अवस्था में न्यायालय की शरण ले सकता है । इसलिए डॉ० भीमराव अंबेडकर ने संवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान का हृदय और आत्मा बताया है l
संवैधानिक उपचारों के अधिकार का उद्देश्य मूल अधिकारों के संरक्षण हेतु गारंटी, प्रभावी, सुलभ और संक्षेप उपचारों की व्यवस्था है । सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय संवैधानिक उपचारों के अधिकार के तहत रिट जारी कर सकते हैं । जिनकी कुल संख्या 5 है l इसलिए हम कह सकते है कि संवैधानिक उपचारों का अधिकार नागरिकों के लिहाज से भारतीय संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है ।
यह भी देखें :-
14 सन् 1989 के बाद भारतीय राजनीति में आए बदलावों को समझाइए।
अथवा
https://brainly.in/question/38749117