स्वगृहे पूज्यते मूर्खः, स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।।5।।
अन्वय- स्वगृहे मूर्खः पूज्यते। स्वग्रामे प्रभुः पूज्यते।
स्वदेशे राजा पूज्यते। विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।
सुखार्थिनः कुतः विद्या, विद्यार्थिनः कुतो सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेत् विद्यां, विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्॥ 6
अन्वय- सुखार्थिनः विद्या कुतः? विद्यार्थिनः सुखम् कुतः
सुखार्थी विद्यां त्यजेत्, विद्यार्थी वा सुखं त्यजेत्।
Answers
स्वगृहे पूज्यते मूर्खः, स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।।5।।
इस श्लोक का अर्थ : मूर्ख व्यक्ति का अपने घर में महत्व होता है| प्रभु को गाँव में सब पूजते है| देश में राजा को पूजा जाता है| विद्वान को सभी जगहों पर पूजा जाता है| सब जगह उसकी महानता की बाते की जाती है|
सुखार्थिनः कुतः विद्या, विद्यार्थिनः कुतो सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेत् विद्यां, विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्॥ 6
इस श्लोक का अर्थ : सुख की इच्छा रखने व्यक्ति को विद्या प्राप्त नहीं हो सकती| वह व्यक्ति सुख के आधार पर विद्या को प्राप्त नहीं लर सकता है| सुख की कामना करने वाले व्यक्ति को विद्या का त्याग कर देना चाहिए तथा व्यक्ति को विद्या प्राप्त करने के लिए सुख का त्याग कर देना चाहिए|
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