Hindi, asked by harshalis1126, 4 months ago

स्वमात....वर्तमान मै बुजूर्गू के साथ ही रहे अमानवीय व्यवहार के संदर्भ मैं अपने विचार लिखित​

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Answered by Sasmit257
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Explanation:

देश की स्वाधीनता के लिए जो उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन निस्संदेह अत्यंत बुरा था| जिस दिन, स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफत, मुल्ला, मौलवी और धर्माचार्यों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया| एक प्रकार से उस दिन हम ने स्वाधीनता के क्षेत्र में, एक कदम पीछे हट कर रखा था | अपने उसी पाप का फल आज हमें भोगना पड़ रहा है |देश को स्वाधीनता के संग्राम ही ने मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में पेश किया, उन्हें अधिक शक्तिशाली बना दिया और हमारे इस काम का फल यह हुआ की इस समय हमारे हाथों ही से बढ़ाई इनकी और इनके से लोगों की शक्तियां हमारी जड़ उखाड़ने और देश में मजहबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर रही है

इस समय देश में धर्म की धूम है, धर्म और ईमान के नाम उत्पाद किए जाते हैं, रमुआ पासी और बुधू मियाँ धर्म

और ईमान को जानें या न जाने, परंतु उसके नाम पर उबल पड़ते हैं, और जान लेने और जान देने के लिए तैयार

हो जाते हैं। देश के सभी शहरों का यही हाल है। बल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष

है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं उधर जुत जाता है। यथार्थ दोष है,

कुछ चलते-पुर्जे, पढ़े-लिखे लोगों का, जो मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरुपयोग इसलिए कर रहे हैं

कि इस तरह उनका नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और ईमान की बुराइयों से काम लेना उन्हें

सुगम जान पड़ता है। सुगम है भी। साधारण-से-साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी

हुई है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना वाजिब है। बेचारा साधारण आदमी धर्म के तत्त्वों को

क्या जाने? उसकी इस अवस्था से चालाक लोग इस समय बहुत बेजा फायदा उठा रहे हैं। धर्म और ईमान के नाम

पर किए जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए, साहस और दृढ़ता के साथ, उद्योग होना चाहिए। धर्म

और ईमान, मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचा उठाने

का साधन हो! वह किसी दशा में भी, किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने या कुचलने का साधन न बने ।

व्यक्ति अपनी इच्छानुसार धर्म का पालन कर सके। यदि किसी धर्म को मानने वाले कहीं जबरदस्ती टाँग अड़ाते

हों, तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए। देश की स्वाधीनता के लिए जो

उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन नि:संदेह अत्यंत बुरा था, जिस दिन, स्वाधीनता के क्षेत्र में, खिलाफत,

मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया। एक प्रकार से उस दिन हमने

स्वाधीनता के क्षेत्र में, एक कदम पीछे हटकर रखा था।

Answered by omkarkendre894
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vartman Mein Bujurg ke sath rahe amanya vyavhar sandarbh Mein Apne vichar likhiye

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