Social Sciences, asked by kk5098719, 5 months ago



स्वर्गीय प्राचीनता का क्या मतलब हैइस अवधि के दौरान कौन से धार्मिक और प्रशासनिक
परिवर्तन किए गए थे।

Answers

Answered by iharshupandey
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Explanation:

के दौरान भी कुछ नहीं बदला है और भारत में व्यापार करने के रास्ते में अब भी वही प्रशासनिक बाधाएं मौजूद हैं।

इन तीनों की अंदरूनी सतह पर एक धागा सभी को एक-दूसरे से जोड़ता है। वह है राजनीतिक नेतृत्व एवं प्रशासनिक व्यवस्था के बीच के वे घनिष्ठ अंतरसंबंध, जो बदलती हुई आवश्यकताओं के अनुकूल बदलने का नाम नहीं ले रहे हैं। इसका परिणाम जहां एक ओर राजनीतिक विफलता के रूप में, जिसे काफी कुछ लोकतांत्रिक विफलता' का नाम दे दिया जाता है, सामने आ रहा है वहीं राजनेताओं एवं नौकरशाहों के पारस्परिक द्वंद्वपूर्ण संबंधों के रूप में भी। 1985 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने नौकरशाहों पर नकेल कसने की खुलेआम घोषणा की थी। मोदी ने हालांकि बारह साल तक सफलतापूर्वक गुजरात का प्रशासन नौकरशाहों की ही मदद से चलाया था, किंतु लगता है कि इस संतोषजनक अनुभव के बावजूद उनके मन के किसी कोने में कहीं कोई छोटा सा ही सही, लेकिन संदेह था। इसलिए आते ही उन्होंने घोषणा की कि 'अब मेरा क्या, मुझे क्या' नहीं चलेगा। इस संबंध में उन्होंने समय की पाबंदी जैसे कुछ घिसे-पिटे से कदम भी उठाए। लोग समय पर, वह भी केवल दिल्ली के दफ्तरों में पहुंचने लगे। लेकिन इसका आउटपुट क्या रहा, कोई नहीं जानता। खैर.राज्यों में तो इसका रत्ताी भर भी असर नहीं हुआ है। यदि थोड़ा-बहुत सुधार हुआ भी है, तो वह बहुत ऊंचे स्तर पर, लेकिन कुल मिलाकर इतना अप्रभावी कि उसे ऊंट के मुंह में जीरा से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता। यदि हम आप की अकल्पनीय जीत को राजनीतिक दृष्टि की बजाय प्रशासकीय निगाहों से देखने की कोशिश करें, तो संदेश बहुत साफ है कि लोगों को नीतियां नहीं चाहिए। लोगों को घोषणाएं नहीं चाहिए। उन्हें तो अपने रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी हुई समस्याओं के समाधान चाहिए और साथ में चाहिए वह थोड़ी सी गरिमा, जिसे देने का संकल्प संविधान पर हस्ताक्षर करने वालों ने लिया था। यानी भ्रष्टाचार से मुक्ति, पुलिस की प्रताड़ना से निजात और सुरक्षापूर्वक जीवन जीने का माहौल।

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