India Languages, asked by himansu3878, 11 months ago

सावरा के संदर्भ में जनजातीय कला के महत्व का वर्णन करें।

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Answered by shishir303
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भारत में जनजातीय समुदाय अपने धार्मिक कार्यक्रमों को चित्रमय लेखन के साथ संपन्न करता आ रहा है। जिसमें वह भारत के विभिन्न भागों में दीवारों की सजावट के रूप में भी काम में लिया जाता था, जैसे सावरा, मधुबनी, वरली आदि।

जनजातीय कला सावरा चित्रलेख में पाई जाने वाली आकृति जो त्रिभुजों के मिलने से बनती है, जिसमें एक बिंदु पर मिले हुए दो त्रिभुजों में अपनी त्रिभुज मानव शरीर के ऊपरी भाग का प्रतीक होता है, तो सिर का भाग एक छोटे वृत्त के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। उससे भी छोटा एक वृत्त बड़े वृत्त के साथ मिलकर सिर की आकृति को दर्शाता है। जब किसी वृत्त के साथ दो टांगें और दो हाथ दर्शाने के लिए चार रेखायें और जोड़ दी जाती है तो वह एक मानव शरीर की आकृति का प्रतीक बन जाता है। इस तरह अन्य कई संकेत वृत्तांतों की विभिन्न जटिलताओं के सूचक बनते हैं। इन सभी वृत्तों का एक ऐसा चित्रलेख पेश किया जाता है जो इन दीवारी सजावटों या अलंकरण ओं का आवश्यक पहलू बन जाता है।

सावरा चित्रलेख उड़ीसा में जनजीवन का परंपरागत रुप है। सफेद रंग में चित्रित चित्रलेखों को इत्तर या इदित्तल भी कहा जाता है। यह चित्र उनके घरों की भीतरी और बाहरी दोनों तरह की दीवारों पर बनाए जाते हैं। सावरा या इदित्तल अपने इष्ट देव को प्रसन्न करने के लिए बनाया जाता है और अपने इष्टदेव जलीयसुम को उसकी प्रशंसा के द्वारा प्रसन्न करने के लिए चित्र में यह दर्शाने का प्रयत्न किया जाता है कि वह बहुत अधिक शक्तिशाली व्यक्ति है।

इन प्रतीकों की संदेश सूचक क्षमता की प्रभावविता को गहराई से जानने के लिए एक चित्रलेख का अध्ययन करने पर देखते हैं कि सावरा चित्रलेख या इदित्तल मृतकों की यादगार में, बीमारियों को दूर भगाने के लिये या मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि करने के लिए और कतिपय पर्वों के अवसर पर तैयार किये जाते हैं।

ऐसे चित्रलेखों को चित्रित करने के लिए घर की किसी दीवार को लाल चिकनी मिट्टी से पोतकर कर उस पर चावल और आटे के गोल से तैयार मिश्रण से चित्रकारी की जाती है। इस मिश्रण को दीवार पर उकेरने के लिए एक ऐसी टहनी का प्रयोग किया जाता है, जो इसी कार्य विशेष के लिए तैयार की जाती है। इसका एक सिरा दीवार पर चित्रित करने के लिये विशेष रूप से तैयार किया जाता है।

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पाठ - 5 : “ग्राफिक डिजायन की स्वदेशी परंपराएँ”

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