'सौवर्णो नकुलः' इत्यस्य पाठस्य सारांश: मातृभाषया लेखनीयः
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'सौवर्णो नकुलः' इत्यस्य पाठस्य सारांश: हिंदी मातृभाषया...
'सौवर्णो नकुलः' पाठ का हिंदी मातृभाषा में सारांश इस प्रकार है...
‘सौवर्णो नकुलः’ पाठ महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ के आश्वमेधिक पर्व अध्याय (अध्याय 91-93) से संकलित किया गया है।
सारांश...
महाभारत के युद्ध के बाद युधिष्ठिर अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करते हैं। यज्ञ संपन्न होने के बाद एक नकुल अर्थात नेवला यज्ञभूमि में आता है, जिसका आधा शरीर सोने का है। वह यज्ञ भूमि में उपस्थित याज्ञिकों से कहता है कि महाराज युधिष्ठिर जो अश्वमेध यज्ञ यज्ञ कर रहे हैं वह उस ब्राह्मण के सक्तुप्रस्थ यज्ञ के समान नहीं है, जिस ब्राह्मण के कारण मेरा आधा शरीर स्वर्ण में हो गया। इस नेवले की ऐसी बातें सुनकर याज्ञिक उससे सक्तुप्रस्थ यज्ञ के विषय में जानने की जिज्ञासा प्रकट करते हैं, तब नेवला याज्ञिकों के सामने कथा सुनाता है...
नेवला कहता है....हे राजओं में श्रेष्ठ नरपति। अश्वमेध सम्पन्न हो जाने पर उसे जो सबसे महान आश्चर्य हुआ उसे सुनों। बिल में रहने वाला वो अति शक्तिशाली नेवला अपने बिल से बाहर निकलकर बोलने लगा। तुम्हारा ये यज्ञ कुरुक्षेत्र में निवास करने वाले और खेत में गिरे दानों से भरण-पोषण करने वाले दानें के एक सेर सत्तु के समान भी नही है।
कुरुक्षेत्र नामक स्थान पर खेतों से गिरे हुये दानों से अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाला एक ब्राह्मण था जो अपनी पत्नी और पुत्र के तपस्या कर रहा था। उसके परिवार को कभी कभी भरपेट भोजन दान में मिल जाता था और कभी-कभी भरपेट भोजन नसीब तक नहीं होता। ब्राह्मण कबूतर की बातें जितना मिलता उसी से संतुष्टि प्राप्त कर लेता था, लेकिन वह अपनी जीवन की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहा था। एक बार छह पहर तक भटकने के बाद उसने जो के कुछ जौ का अनाज एक प्राप्त किया और उन सभी तपस्वीजन ने वह जो आटे का सत्तू बनाकर पाव पाव भर आपस में बांट लियाय़ उसी समय अतिथि का आगमन हुआ अतिथि को देखकर वे सभी जन बेहद प्रसन्न हुए।
फिर उस ब्राह्मण परिवार ने उस अतिथि का स्वागत सत्कार किया। उसे आसन प्रदान किया। उसके हाथ पैर धुलवाये और उससे अनुरोध करते हुए उसके समक्ष जौ का सत्तु पेश किया और कहा कि यह नियम द्वारा उपार्जित किया गया सत्तू है, कृपया इसे ग्रहण करें।
ऐसा कहकर उस ब्राह्मण ने अतिथि के समक्ष वह सत्तू पेश कर दिया। तब वह वह अतिथि बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने उस ब्राह्मण की प्रशंसा करते हुए कहा कि मैं तुम्हारे भक्तिभाव भरे त्याग और अतिथि सत्कार से प्रसन्न हूँ। तुम ब्राह्मणों में श्रेष्ठ, धर्म और नियम का पालन करने वाले हो। तुम्हारे जप-तप, दान, तपस्या से प्रसन्न होकर तुम्हें स्वर्ग जाने का आशीर्वाद देता हूँ। ऐसा कहकर वह अतिथि चला गया और वह ब्राह्मण अपने परिवार सहित स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर गया।
वह नेवला बोला उस ब्राह्मण के स्वर्ग को प्रस्थान करने के बाद मैं अपने अपने बिल से बाहर निकल आया और उन सत्तू के दानों पर लोटने लगा जिनके प्रभाव के कारण उसका आधा शरीर सोने का हो गया। इस प्रकार वो नेवला हँस कर बोला कि इसीलिए मैं कह रहा था कि इस यज्ञ का फल उस सत्तू के एक सेर दानों के बराबर भी नहीं है।
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।। संस्कृत (भास्वती) कक्षा-11 - द्वितीया पाठः (पाठ-2) “सौवर्णों नकुलः”।।
इस पाठ से संबंधित कुछ अन्य प्रश्न...▼
रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) राजशार्दूल!..........श्रूयताम्।
(ख) अयं वः यज्ञः.............तुल्य: नास्ति।
(ग) पुरा उञ्छवृत्तिर्द्विजः ........ अभवत्।
(घ) तदा क्षुधार्तम् ........... कुटी प्रवेशयामासुः।
(ङ) तस्य विप्रस्य तपसा मे .......... काञ्चनीकृतम्।
(च) सक्तुप्रस्थेनायं...........सम्मितो नास्ति।
https://brainly.in/question/15096451
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