स्वर्ण से नहीं अपितु स्त्रियों और पुरुषों से एक राष्ट्र मजबूत और महान बनता है यह कथन किस विद्वान का है
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सत्य और सम्मान की खातिर जो डटे रहते हैं और कष्ट झेलते हैं, जो परिश्रम करते हैं जब अन्य निद्रामग्न होते हैं, जो साहस दिखाते हैं जब अन्य भाग खडे़ होते हैं,वही लोग राष्ट्र के स्तंभों की गहरी नींव डालते हैं और आकाश तक उसे उँचा उठाते हैं।" यह कथन है - हटिंग्टन जौर्ज बी क्रेशी अल्फ्रेड रेट्जेल राल्पफ वाल्डो इमरसन
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