स्वर-रहित व्यंजन का प्रयोग किस प्रकार होता है?
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Answer:
अगर सूक्ष्मता से देखा जाय तो स्वर रहित व्यञ्जन वर्ण का प्रयोग नहीं होता है।
इसे माहेश्वर सूत्रों(अक्षर समाम्नाय=(संस्कृत) वर्णमाला की व्याख्या में स्पष्ट किया गया है,जहां चतुर्दश माहेश्वर सूत्र, अक्षर समाम्नाय- अ इ उण्।ऋ लृक्।ए ओङ्।ऐ औच्।ह य व रट्।लण्।ञ म ङ ण नम्।झ भञ्।घ ढ धष्।ज ब ग ड दश्।ख फ छ ठ थ च ट तव्।कपय्।श ष सर्।हल्।
इन चौदह सूत्रों,अक्षर समूहों को समझाते हुए इनकी व्याख्या में कहा गया है- हकारादिष्वकार उच्चारणार्थः=हकार+आदिषु+अकार उच्चारणार्थः=हकार आदि अक्षरों में अकार उच्चारण मात्र के लिए है।
"न पुनरन्तरेणाचं व्यञ्जनस्योच्चारणमपि भवति" इति भाष्यात्=न पुनः अन्तरेण अचं वञ्जनस्य उच्चारणम् अपि भवति= (अच्=स्वर)स्वर के बिना व्यञ्जन का उच्चारण भी नहीं होता है ऐसा पातञ्जल महाभाष्य में कहा गया है। स्वयं राजन्ते स्वराः= जो अपने आप शोभित होते हैं,उच्चरित होते हैं।अन्वक् भवति व्यञ्जनम् = व्यञ्जन अन्वक् अर्थात् पश्चाद्गामी,बाद में जानेवाले अर्थात् स्वरों के अनुसरण करनेवाले होते हैं(महाभाष्य)।
विविधं गच्छत्यजुपरागवशादिति व्यञ्जनम्=विविधं गच्छति अच्(स्वर) उपरागवशात् इति व्यञ्जनम्=स्वर विभिन्न प्रकार से निकटता के कारण जिसमें लगे वह व्यञ्जन है)।वस्तुतः "निकटता एवं आश्रित होना ही मिलने का कारण होता है"यह साहित्यिक अर्थ ध्वनित होता है,मुझे यह भी अर्थ लगता है और निकटता होने पर विभिन्न प्रकार से मिलना-जुलना होता ही है। क्योंकि उप समीपे रागः अनुरागःइति उपरागः अर्थात् निकटता के कारण उत्पन्न होनेवाला प्रेम।
उपरागश्च पूर्वपराच्संनिधानेपि परेणाच् भवति न पूर्वेण।(कैय्यट) । अर्थात् (यह)निकटता (चाहे)पहले या बाद में होने पर भी बाद में (ही) स्वर(=अच्)होता है,पहले नहीं।जैसे- ह= ह्+अ।क्+अ=क।
व्याकरण शास्त्र की इस व्याख्या के पश्चात् कुछ शब्दों का उच्चारण देखते हैं-- मत्स्य(मछली) = म्+अ+त्+स्+य्+अ।यहाँ मत्स्य शब्द के विश्लेषण से यह ज्ञात होता है कि म् व्यञ्जन की सहायता(उच्चारण)के लिए अ आता है एवं त् स् य् इन तीनों अक्षरों के उच्चारण सहयोग के लिए अन्त में अ आता है। रक्ताम्बर(लाल कपड़ा)=र्+अ+क्+त्+आ+म्+ब्+अ+र्+अ।रक्ताम्बर शब्द के विश्लेषण से भी उपरोक्त व्याकरण शास्त्र के वचन सिद्ध हैं। अतः स्वर रहित व्यञ्जन का वर्णित प्रकार से ही प्रयोग होता है,यह स्पष्ट है।
प्रश्न के लिए धन्यवाद!साधुवाद!
Explanation:
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अगर सूक्ष्मता से देखा जाय तो स्वर रहित व्यञ्जन वर्ण का प्रयोग नहीं होता है।
इसे माहेश्वर सूत्रों(अक्षर समाम्नाय=(संस्कृत) वर्णमाला की व्याख्या में स्पष्ट किया गया है,जहां चतुर्दश माहेश्वर सूत्र, अक्षर समाम्नाय- अ इ उण्।ऋ लृक्।ए ओङ्।ऐ औच्।ह य व रट्।लण्।ञ म ङ ण नम्।झ भञ्।घ ढ धष्।ज ब ग ड दश्।ख फ छ ठ थ च ट तव्।कपय्।श ष सर्।हल्।
इन चौदह सूत्रों,अक्षर समूहों को समझाते हुए इनकी व्याख्या में कहा गया है- हकारादिष्वकार उच्चारणार्थः=हकार+आदिषु+अकार उच्चारणार्थः=हकार आदि अक्षरों में अकार उच्चारण मात्र के लिए है।
"न पुनरन्तरेणाचं व्यञ्जनस्योच्चारणमपि भवति" इति भाष्यात्=न पुनः अन्तरेण अचं वञ्जनस्य उच्चारणम् अपि भवति= (अच्=स्वर)स्वर के बिना व्यञ्जन का उच्चारण भी नहीं होता है ऐसा पातञ्जल महाभाष्य में कहा गया है। स्वयं राजन्ते स्वराः= जो अपने आप शोभित होते हैं,उच्चरित होते हैं।अन्वक् भवति व्यञ्जनम् = व्यञ्जन अन्वक् अर्थात् पश्चाद्गामी,बाद में जानेवाले अर्थात् स्वरों के अनुसरण करनेवाले होते हैं(महाभाष्य)।
विविधं गच्छत्यजुपरागवशादिति व्यञ्जनम्=विविधं गच्छति अच्(स्वर) उपरागवशात् इति व्यञ्जनम्=स्वर विभिन्न प्रकार से निकटता के कारण जिसमें लगे वह व्यञ्जन है)।वस्तुतः "निकटता एवं आश्रित होना ही मिलने का कारण होता है"यह साहित्यिक अर्थ ध्वनित होता है,मुझे यह भी अर्थ लगता है और निकटता होने पर विभिन्न प्रकार से मिलना-जुलना होता ही है। क्योंकि उप समीपे रागः अनुरागःइति उपरागः अर्थात् निकटता के कारण उत्पन्न होनेवाला प्रेम।
उपरागश्च पूर्वपराच्संनिधानेपि परेणाच् भवति न पूर्वेण।(कैय्यट) । अर्थात् (यह)निकटता (चाहे)पहले या बाद में होने पर भी बाद में (ही) स्वर(=अच्)होता है,पहले नहीं।जैसे- ह= ह्+अ।क्+अ=क।
व्याकरण शास्त्र की इस व्याख्या के पश्चात् कुछ शब्दों का उच्चारण देखते हैं-- मत्स्य(मछली) = म्+अ+त्+स्+य्+अ।यहाँ मत्स्य शब्द के विश्लेषण से यह ज्ञात होता है कि म् व्यञ्जन की सहायता(उच्चारण)के लिए अ आता है एवं त् स् य् इन तीनों अक्षरों के उच्चारण सहयोग के लिए अन्त में अ आता है। रक्ताम्बर(लाल कपड़ा)=र्+अ+क्+त्+आ+म्+ब्+अ+र्+अ।रक्ताम्बर शब्द के विश्लेषण से भी उपरोक्त व्याकरण शास्त्र के वचन सिद्ध हैं। अतः स्वर रहित व्यञ्जन का वर्णित प्रकार से ही प्रयोग होता है,यह स्पष्ट है।
प्रश्न के लिए धन्यवाद!साधुवाद!