स्वर वर्णों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए
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संक्षिप्त रूप से बात करें तो हम कह सकते हैं कि स्वर उन वर्णों को कहा जाता है जिनका उच्चारण बिना किसी बाधा या अवरोध के होता है। इनके उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती। ये पूर्ण रूप से स्वतंत्र होते हैं। स्वरों के उच्चारण में वायु फेफड़ों से बाहर निकलती हुई मुख से निर्बाध रूप से निकलती है।
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स्वर वर्ण हमारी भाषा के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्वर वर्णों की विशेषताओं को समझना भाषा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
Explanation:
निम्नलिखित हैं स्वर वर्णों की विशेषताएं:
- आवाज़ की उच्चाई- स्वर वर्ण उच्चारण के समय आवाज़ की उच्चाई बदलते हुए उच्च, मध्यम और निम्न होती है।
- आवाज़ की गति- स्वर वर्ण उच्चारण के समय आवाज़ की गति भी बदलती है। इसलिए, उन्हें आवाज़ की उच्चाई और गति के आधार पर वर्णमाला में वर्गीकृत किया जाता है।
- आकार- स्वर वर्णों के आकार भी अलग-अलग होते हैं। जैसे, अगर हम आई और वर्ण की बात करें तो, उत्तर भारतीय भाषाओं में उत्तराधिकारी व्यक्ति उ वर्ण को उच्चारित करते हैं, जबकि दक्षिण भारतीय भाषाओं में उ को उच्चारित किया जाता है।
- स्पष्टता- स्वर वर्ण उच्चारण के लिए आवश्यक होते हैं। स्वर वर्ण का स्पष्ट उच्चारण न होने पर उनका अर्थ हो सकता है। इसलिए, स्वर वर्णों के सही उच्चारण के लिए व्याकरण नियमों का ज्ञान होना बहुत जरूरी होता है।
- संयोग- स्वर वर्णों के संयोग से भी नए वर्ण बनते हैं। जैसे, आदि को आई और उ के संयोग से बनाया जाता है। इसलिए, संयोग का ज्ञान स्वर वर्णों के उच्चारण के लिए भी बहुत जरूरी होता है।
- वर्ण युग्म- स्वर वर्णों के विभिन्न युग्म भी एक नए वर्ण के रूप में काम करते हैं। जैसे, और को अर्थात और भी लिखा जाता है।
- उच्चारण स्थान- स्वर वर्णों का उच्चारण स्थान भी भाषा के आधार पर अलग-अलग होता है। जैसे, हिंदी भाषा में अंग्रेजी के वर्णों के उच्चारण स्थान में कुछ अंतर होता है।
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