Hindi, asked by Hkhkh8219, 11 months ago

स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं का योगदान

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Answered by asmasadiya2005
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आजीवन संगिनी कस्‍तूरबा की पहचान सिर्फ यह नहीं थी आजादी की लड़ाई में उन्‍होंने हर कदम पर अपने पति का साथ दिया था, बल्कि यह कि कई बार स्‍वतंत्र रूप से और गाँधीजी के मना करने के बावजूद उन्‍होंने जेल जाने और संघर्ष में शिरकत करने का निर्णय लिया। वह एक दृढ़ आत्‍मशक्ति वाली महिला थीं और गाँधीजी की प्रेरणा भी।

विजयलक्ष्‍मी पंडित : एक संपन्‍न, कुलीन घराने से ताल्‍लुक रखने वाली और जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्‍मी पंडित भी आजादी की

लड़ाई में शामिल थीं। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्‍हें जेल में बंद किया गया था। वह एक पढ़ी-लिखी और प्रबुद्ध महिला थीं और विदेशों में आयोजित विभिन्‍न सम्‍मेलनों में उन्‍होंने भारत का प्रतिनिधित्‍व किया था। भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली महिला मंत्री थीं। वह संयुक्‍त राष्‍ट्र की पहली भारतीय महिला अध्‍यक्ष थीं। वह स्‍वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत थीं, जिन्‍होंने मास्‍को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्‍व किया।

अरुणा आसफ अली : हरियाणा के एक रूढि़वादी बंगाली परिवार से आने वाली अरुणा आसफ अली ने परिवार और स्‍त्रीत्‍व के तमाम बंधनों

 

को अस्‍वीकार करते हुए जंग-ए-आजादी को अपनी कर्मभूमि के रूप में स्‍वीकार किया। 1930 में नमक सत्‍याग्रह से उनके राजनीतिक संघर्ष की शुरुआत हुई। अँग्रेज हुकूमत ने उन्‍हें एक साल के लिए जेल में कैद कर दिया। बाद में गाँधी-इर्विंग समझौते के बाद जब सत्‍याग्रह के कैदियों को रिहा किया जा रहा था, तब भी उन्‍हें रिहा नहीं किया गया।  

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