History, asked by ravitiwariagra, 1 year ago

स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी पंडित तेजसिंह तिवारी व नाना साहब के बीच का पूर्ण विवरण बताएं

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Answered by Anonymous
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नाना साहब का जन्म 1824 में महाराष्ट्र के वेणु गांव में हुआ था। बचपन में इनका नाम भोगोपंत था। इन्होंने 1857 की क्रांति का कुशलता पूर्वक नेतृत्व किया। नाना साहब सुसंस्कृत, सुन्दर व प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। नाना साहब मराठों में अत्यंत लोकप्रिय थे। इनके पिता का नाम माधव राव व माता का नाम गंगाबाई था।

जब 1827 में बाजीराव ब्रितानियों से संधि करके कानपुर चले गए तो नाना साहब (भोगोपंत) के माता पिता व उनका परिवार भी बाजीराव पेशवा की शरण में चला गया। जब बाजीराव ने बालक भोगोपंत को देखा तो वे उससे बहुत प्रभावित हो गये थे, और उन्होंने नाना साहब को गोद ले लिया। लेकिन बाजीराव की मृत्यु के बाद ब्रितानी सरकार ने नाना साहब को मराठों का पेशवा बनाकर गद्‌दी पर बैठाने से इंकार कर दिया। नाना साहब ने उनसे बदला लेने व भारत को आज़ाद करवानेकी ठान ली। उनके साथ तांत्या टोपे कुंवर सिंह, अजीमुल्ला खां जैसे क्रांतिकारी भी आज़ादी की लड़ाई में आगे आए। नाना साहब कुशल व दूरदर्शी राजनीतिज्ञ थे। इन सब क्रांतिकारियों का केंद्र बिठुर बन गया। सबने आज़ादी के लिये गांव-गांव तक क्रांति की लहर फ़ैलाई। धीरे-धीरे ये लहर कानपुर झांसी दिल्ली आदि जगह पहुंच गई। कई दिनों तक युद्ध चला। क्रांति का प्रमुख नेता नाना साहब को बनाया ग़या।

कुछ समय पश्चात कानपुर में आगजनी की घटनाएं हुई। मराठों ने ब्रितानियों के साथ युद्ध किया। बाद में नाना साहब को मराठों का राजा बना दिया गया। परंतु अभी ब्रितानी शांत नहीं हुए। उन्होंने फ़िर से अत्याचार का सिलसिला जारी रखा। जिससे मराठों में पुन: क्रांति के लिये जोश आया। क्रांति की लहर फ़तेहपुर, कानपुर तक फ़ेल गई जिससे घमासान युद्ध हुआ।

इस बार नाना साहब ब्रितानियों की विशाल सेना के सामने नहीं टिक पाए। 17 जुलाई को नाना साहब बिठुर चले गये, लेकिन फ़िर भी युद्ध के बादल फ़िर से मंडराने लगे परंतु नाना साहब ने हार नहीं मानी। उन्होंने नेपाल के राजा शमशेर जंग बहादुर से सहायता की याचना की लेकिन नेपाल नरेश ने उनका साथ नहीं दिया बल्कि क्रांतिकारियों को गिरफ़्तार करवाने में ब्रितानियों का साथ दिया। अंत में, नाना साहब अपने साथियों के साथ नेपाल की तराइयों में चले गए। नाना साहब की मृत्यु कब कहां व कैसे हुई किसी को भी नहीं पता। परंतु देश की आज़ादी में उनके त्याग व संघर्ष को हम सदैव याद रखेंगे।


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Answered by Ashi03
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नाना साहेब (जन्म १८२४ - १८५७ के पश्चात से गायब) सन १८५७ के भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम के शिल्पकार थे। उनका मूल नाम 'धोंडूपंत' था। स्वतंत्रता संग्राम में नाना साहेब ने कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोहियों का नेतृत्व किया।.

28 जनवरी सन् 1851 को पेशवा का स्वर्गवास हो गया। नानाराव ने बड़ी शान के साथ पेशवा का अंतिम संस्कार किया। दिवंगत पेशवा के उत्तराधिकार का प्रश्न उठा। कंपनी के शासन ने बिठूर स्थित कमिश्नर को यह आदेश दिया कि वह नानाराव को यह सूचना दे कि शासन ने उन्हें केवल पेशवाई धन संपत्ति का ही उत्तराधिकारी माना है न कि पेशवा की उपाधि का या उससे संलग्न राजनैतिक व व्यक्तिगत सुविधाओं का। एतदर्थ पेशवा की गद्दी प्राप्त करने के सम्बंध में व कोई समारोह या प्रदर्शन न करें। परंतु महत्वाकांक्षी नानाराव ने सारी संपत्ति को अपने हाथ में लेकर पेशवा के शस्त्रागार पर भी अधिकार कर लिया। थोड़े ही दिनों में नानाराव ने पेशवा की सभी उपाधियों को धारण कर लिया।


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