स्वयं प्रभा और समुज्ज्वला का अर्थ लिखिये
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स्वतंत्रता को स्वयं प्रभा और समुज्ज्वला इसलिए कहा गया है , जयशंकर प्रसाद ने देश में आजादी की लहर जगाने के लिए छेड़ी थी, उनकी कविता में स्वतंत्रता की पुकार इतनी गहरी थी| इस कविता में स्वतंत्रता की भावना जगाने ले लिए प्रेरित किया है | इस कविता में कवि देश के सैनिकों और नौजवानों का उत्साह बढ़ाते हुए कहते हैं कि तुमको प्रतिज्ञा करनी है और हर मुश्किल का सामना करके आगे बढ़ते जाते जाना है|
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स्वयंप्रभा और समुज्जवला का अर्थ इस प्रकार होगा...
स्वयंप्रभा : स्वयं में प्रकाशवान होने वाली।
समुज्जवला : अत्याधिक प्रकाशवान, कांति युक्त
कवि जयशंकर प्रसाद अपनी कविता ‘हिमाद्रि तुंग श्रृंग से’ में कहते हैं...
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से,
प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला,
स्वतंत्रता पुकारती।।
अर्थात कवि का कहना है कि स्वतंत्रता अपने आप में प्रकाशवान और कांतिमय होती है अर्थात स्वतंत्रता का अपना एक सुख और आनंद होता है, वह स्वयं में प्रकाशित होती है और स्वयं से ही कांति युक्त होती है, इसी कारण कवि ने स्वतंत्रता को स्वयंप्रभा और समुज्जवला कहा है।