स्युओं के रहन-सहन के ढंग से भी आर्य उनके बैरी बन गए। ऐसा लगता है कि आर्यों का पशुपालन आधारित जनजातीय और अस्थायी जीवनक्रम देशीय संस्कृति के स्थायी एवं शहरी जीवन से बेमेल था
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बुझ गए प्रदीप की तरह उसका निर्वाण हो जाता है। और, इस निरोध की प्राप्ति का मार्ग आर्यसत्य - आष्टांगिक मार्ग है। इसके आठ अंग हैं-सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वचन, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीविका, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि। इस आर्यमार्ग को सिद्ध कर वह मुक्त हो जाता है।
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